सेहतमंद दिल के लिए समझदारी से चुनें खाना पकाने वाला तेल

विभिन्न खाने के तेलों के विलक्ष्ण तत्व मिला कर बनाया जा सकता है

 दिल की बीमारियों से बचने का सुरक्षा कवच

21वीं सदी के भारतीयों द्वारा ग़ैर-सेहतमंद जीवनशैली की आदतों की वजह से देश में दिल के रोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। पूरा दिन बैठे रहना, असंतुलित आहार, अत्यधिक तनाव इस समस्या को और भी बढ़ावा देते हैं। इस वक्त रक्त धमनीयों के रोगों की रोकथाम और इन्हें ठीक करने की बेहद आवश्यकता है, क्योंकि यह देश में तेज़ी से बढ़ रहे दिल के रोगों में से एक है। यूं तो पूरी जीवनशैली को बेहतर बनाना कई मामलों में फायदेमंद हो सकता है लेकिन घर में खाना पकाने का तेल बदलने से ही आप दिल के रोगों से बच सकते हैं।


Choose Healthy Cooking Oils for Healthy Heart
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हमारे देश में खाना पकाने का तेल हर घर का ज़रूरी हिस्सा है और आहार के लिए ज़रूरी फैट का अह्म स्रोत है। जिन तेलों में बुरा काॅलेस्टराॅल सैचुरेटेड फैट और टरांस फैट ज़्यादा मात्रा में हो वह रक्त धमनीयों में मैल जमने का कारण बन सकते हैं जिससे रक्त धमनियां बंद हो जाती हैं और दिल का दौरा पड़ जाता है और जिनमें मूफा, पूफा ख़ास तौर पर ओमेगा-3 पूफा हो वह काफी सुरक्षित होते हैं। वैसे तो कोई भी तेल ऐसा नहीं है जिसमें फैटी एसिड की मात्रा शरीर की ज़रूरत के मुताबिक हो। भारत में आम तौर पर हर इलाके के लोग अलग-अलग किस्म का तेल खाना पकाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी और दक्षिणी भारत में मुंगफली का तेल प्रयोग किया जाता है जबकि उत्तर और पूर्व भारत में सरसों का तेल पसंद किया जाता है। शोध में यह बात सामने आई है कि विभिन्न तेलों को साझे रूप मे प्रयोग करना दिल के लिए बेहद लाभकारी हो सकता है और हर घर में इसे अपनाया जाना चाहिए।


कार्डियक कैथ लैब, मैक्स सूपर स्पैश्लिटी हस्पताल पटपड़गंज के एसोसिएट डायरेक्टर व प्रमुख डाॅ मनोज कुमार बताते हैं, “नैशनल इंस्टीच्यूट आॅफ न्यूटरीश्नल इंडिया स्टेट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार हमारे आहार में 15 से 30 प्रतिशत तक चर्बी होनी चाहिए। खाद्य तेल हमारे आहार की चर्बी का एक प्रमुख स्रोत हैं। एक संतुलित दिल के लिए लाभकारी आहार सेहतमंद और अनसेचुरेटेड फैट युक्त होना चाहिए जो दिल की बीमारियों और स्टरोक का खतरा कम करने में मदद करता है। मोनोसेचुरेटेड फैटी एसिडस (मूफा) वाले खाद्य पदार्थ लो डेनसिटी लिपोप्रोटीन काॅलेस्टराॅल लैवल को कम करता है जिसे आम तौर पर बुरा काॅलेस्टराॅल कहा जाता है और हाई डेनसिटी लिपोप्रोटीन काॅलेस्टराॅल के स्तर को बढ़ाता है जिसे अच्छा काॅलेस्टराॅल कहा जाता है। अत्यधिक पौश्टिक तत्वों वाले तेलों में जैतून का तेल, मुंगफली का तेल, चावल के चोकर या राईस ब्रैन का तेल, सरसों का तेल आदि शामिल हैं। यह याद रखना बेहद ज़रूरी है कि पशुओं से मिलने वाली चर्बी (मक्खन, घी) में काॅलेस्टर की भरपूर मात्रा हो सकती है, वेजीटेबल आॅयल्स में काॅलेस्टराॅल नहीं होता लेकिन इनमें से कुछ अंदर ही अंदर काॅलेस्टराॅल बनाने का कार्य कर सकते हैं। इस लिए सही किस्म के तेल और उनका मिश्रण चुनना बेहद ज़रूरी है।”


डाईटरी फैट की श्रेणी उनकी सेचुरेशन से तय होती है। उन्हें सेचुरेटेड फैट, पार्शली हाइडरोजिनेटिड या टरांस फैटी एसिड, अनसेचुरेटेड फैटी एसिड, मोनोसेचुरेटेड फैटी एसिड और पाॅलीसेचुरेटिड फैटी एसिड्स की श्रेणियों में बांटा जा सकता है। शोध में यह बात साबित हुई है कि फैटी एसिड कम्पोज़िशनस और अन्य लघु तत्वों जैसे कि टोकोटरिनोल्ज़ए ओरीज़ोनल और संतुलित एसएफएए मूफा और पूफा वाले विभिन्न चर्बियों के मिश्रण सेहतमंद सेरम लिपिड प्रोफाइल बनाने में मदद करते हैं जो रक्त धमनी रोगों से बचाने में कवच का काम करते हैं।
कैलाश हाॅस्पिटल और  हार्ट इंस्टीच्यूटए नोयडा के सीनियर इंटरवेनशनल कार्डियोलाॅजिस्ट डाॅ संतोश कुमार अग्रवाल कहते हैं, “यूं तो सभी खाद्य तेलों के प्रत्येक चमच में कैलरीज़ की मात्रा एकसमान होती है, लेकिन अनसेचुरेटेड फैट के तौर पर जानी जाती सेहतमंद फैट की मात्रा प्रत्येक में अलग-अलग होती है। सूरजमुखी और मक्का के तेल में पाॅलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड्स की मात्रा अत्यधिक होती है और यह बुरे काॅलेस्टराॅल को कम करने में मदद के साथ ही इनसुलिन के प्रति बेहतर संवेदनशीलता रखते हैं। दिल के रोगों से पीड़ितों के लिए इन्हें प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। रैडी टू ईट फूड कम मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है क्योंकि इनमें टरांस फैटी एसिड की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है और जो रक्त धमनियों में मैल जमने और मोटापे का कारण बनती है। यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि आहार में फैट लेना आवश्यक होता है क्योंकि यह शरीर में विटामिन ए, डी और के सोखने में मदद करता है।  फैट्स उर्जा और आवश्यक फैटी एसिड्स का सघन स्रोत हैं जिन्हें शरीर अपने आप पैदा नहीं कर सकता। इस लिए खाद्य फैट को अपने भोजन से हटाने की बजाए ऐसे आहार लेने चाहिए जिनमें सेहतमंद चर्बी हो। भारत में लोगों के आहार में फैट का स्रोत खाद्य तेल हैं। इसलिए सेहतमंद दिल के लिए खाद्य तेलों को सही मिश्रण चुनने की आवष्यकता होती है।”
तेलों का चुनाव करते समय तेल में मौजूद फैटी एसिड प्रोफाइल और माईक्रोन्यूटरिएंट्स का ध्यान रखना चाहिए। खाना पकाने के लिए मुंगफली, राईस ब्रेन, जैतून और सरसों के तेल को प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन चूंकि इन सभी में ओमेगा-3 फैटी एसिड की संतुलित मात्रा नहीं होती, इसलिए इन्हें अदलदल कर प्रयोग करना चाहिए।
इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि तेल को ज़्यादा गर्म नहीं करना चाहिए ताकि इसमें कड़वाहट और आॅक्सीकरण ना हो जाए। इसके साथ ही ज़्यादा गर्म करने या तलने से आक्सीडेशन तत्व जैसे कि प्रोक्सीडसए, हाईडरोप्रोक्सीडस और दूसरे स्तर के तत्व जैसे कि एलडिहायडस और अन्य पर्वितनशील तत्व पैदा हो जाते हैं जो दिल के रोगों और कैंसर का कारण बन सकते हैं। इसलिए तलने के लिए प्रयोग हुए तेल को दोबारा प्रयोग ना करें और उच्च तापमान पर प्रयोग होने वाले तेलों की पहचान करनी चाहिए।
कई किस्म के खाद्य पदार्थ जैसे कि प्रिकुकड, प्रोसैस्ड फूड्स और रैडी टू ईट स्नैक्स में काफी मात्रा में फैट मौजूद होता है। बेकरी उत्पादों जैसे कि बिस्कुट, खारी, पफ पेस्टरी जो कि भारतीयों की सुबह और शाम की चाय का अभिन्न हिस्सा हैं में भी यह काफी मात्रा में होता है। अदृश्य फैट कि अन्य स्रोतों में पापड़,अचार, चटनी और अन्य चीज़ें जो भारत में खाने के लिए खुली मात्रा में प्रयोग की जाती हैं, उन्हें सीमित मात्रा में खाना चाहिए।

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