जयपुर लिट्ररेचर फैस्टीवल: उत्सव या तमाशा
दीप जगदीप सिंह | जयपुर लिट्रेचर फैस्टीवल खत्म हुए एक सप्ताह से ज़्यादा हो चुका है। पांच दिन की 'भीड़ भरी हवाई उड़ान' के बाद 'जैटलैग' से निकलने के लिए शायद एक सप्ताह काफी होता हो। इन सात-आठ दिनों में लिखूं या ना लिखूं वाली हालत लगातार बनी रही, लेकिन आखिर कब तक चुप रहूं, तमाशबीन बन कर तमाशा देखता रहूं, यही सोच कर अब तुम्हारे हवाले जानो तन साथियो... ख़ैर आप सोच रहें होंगे कि यह तमाशा क्या है तो बता दूं कि 2014 में ही मैंने कहीं कह दिया था कि अब इसका नामकरन जयपुर फिल्म, क्रिकेट और लिट्ररेचर फैस्टीवल कर देना चाहिए, लेकिन अब बात उससे भी आगे बढ़ चली है क्योंकि भीड़ के साथ-साथ मंच पर होने वाला प्रस्तुतिकरण भी तमाशे का रूप ले चुका है। इस बार मैं इसे ग्रेट इंडियन लिटरेरी ग्लैमर्स तमाशा कहना चाहता था। आप चाहें तो बुरा मान सकते हैं लेकिन 'मोदी-मो...