पंजाबी कहानी । मां-बेटियां । मनमोहन बावा
लड़कियों के लिए प्रेम आज भी टैबू है। वह प्रेम कर तो सकती हैं, प्रेम के बारे में बात नहीं कर सकती। लड़कियां केवल समाज से, परिवार से, मां से छिप कर ही प्रेम कर सकती हैं और फिर उसकी परकाष्ठा को वक्त और किस्मत के सहारे छोड़ देने के लिए मजबूर होती हैं। यह सच केवल ग्रामीण क्षेत्रों की ही नहीं शहरी मध्यवगीर्य लड़कियों का भी सच है। इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी लड़कियों के लिए प्रेम का मतलब बस घर के किसी कोने में सहेज के रखा वह ब्लैक-बाॅक्स होता है, जिसमें उसके प्रेम की समृतियां कैद है। मनमोहन बावा की पंजाबी कहानी मां-बेटियां एक अतीत के एक पुराने ब्लैक-बाॅक्स और वर्तमान में समृतियां समेट रहे नए ब्लैक-बाॅक्स के अंर्तद्वंद की ऐसी ही कहानी है। क्या इक्कसवीं सदी की मां-बेटियां मिल कर प्रेम के इस ब्लैक-बाॅक्स के अस्तित्व को कोई नया आयाम दे पातीं हैं, जानने के लिए पढ़िए कहानी का यह हिंदी अनुवाद-पिछले आठ दस दिनों स...