ओलंपिक रिंग्स: जब मैं एक छोटे से गाँव की एक छोटी सी लड़की थी तो मुझे नहीं पता था कि ओलंपिक्स क्या होता हैं या इन रिंग्स का क्या मतलब है। मैं भी वैसे ही सपने देखती थी कि मेरे बाल लंबे हों, हाथ में मोबाईल ले के इतरायूं, और वो सब चीज़ें करूं जो कोई भी जवान लड़की आम तौर पर करने के सपने देखती है।
मेरे एक आम बस ड्राइवर पिता मुझ से कहा करते थे कि एक दिन वह अपनी बेटी को ऊंचाई पर हवाई जहाज़ में उड़ता हुआ देखेंगे, वह उस के साथ नीचे सड़क पर गाड़ी चलाएंगे, उनके सपनों को मैं ही सच करूंगी। मैं यह कहना तो नहीं चाहती, लेकिन मुझे लगता है कि मैं उनकी लाडली थी क्योंकि मैं तीन बच्चों में सबसे छोटी थी। जब वह मुझे यह सब कहते थे, तो मैं इस अजीब बात पर हंस दिया करती थी, इस बात का मेरे लिए कोई ज़्यादा मतलब नहीं था। मेरी मां की संघर्ष भरी ज़िंदगी पर तो पूरी एक कहानी लिखी जा सकती थी, उन का सपना बस इतना था कि उन के सभी बच्चे एक दिन उन से बेहतर ज़िंदगी जिएं। ख़ुद आत्मनिर्भर हो जाएं और उन के बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएं, उनके लिए बस इतना ही काफ़ी था। उन के सपने और चाहतें मेरे पिता से कहीं ज़्यादा सीधी साधी थीं।
लेकिन जिस दिन मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए, उस दिन मेरे पास बची थी सिर्फ़ हवाई जहाज़ में उड़ने की उन की सोच और बातें…
मुझे इस बात का मतलब तो ठीक से पता नहीं था, लेकिन फिर भी मैंने उस सपने को अपने दिल से लगा के रखा। मेरी माँ का सपना तब और भी दूर हो गया जब मेरे पिता के जाने के कुछ महीनों बाद माँ को तीसरी स्टेज का कैंसर होने का पता चला। यहाँ से शुरू हुआ तीन बच्चों का सफ़र जो अपनी अकेली माँ का साथ देने लिए अपना बचपन कुर्बान करने वाले थे। जब मेरा सामना ज़िंदगी की सच्चाई से हुआ और मैंने अपने आप को ज़िंदा बचाए रखने (सरवाईव्ल) की दौड़ में झोंक दिया तो जल्दी ही मेरे लंबे बालों और मोबाइल फोन के सपने धुंधले पड़ गए।
लेकिन ज़िंदा रहने की इस दौड़ ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। अपनी माँ के संघर्ष, कभी हार न मानने वाले इरादे और लड़ने के जज़्बे को देखते-देखते मैं वैसी बन गई जैसी मैं आज हूँ। उन्होंने मुझे अपने जायज़ हक के लिए लड़ना सिखाया। जब मैं साहस के बारे में सोचती हूँ तो मेरे ख़्यालों में मेरी मां होती हैं और यही साहस नतीजे की परवाह किए बिना हर लड़ाई को लड़ने में मेरा साथ देता है।
आगे का रास्ता मुश्किल होने के बावजूद, हमारे परिवार ने कभी ईश्वर में आस्था कम नहीं होने दी और हमारा भरोसा हमेशा बना रहा कि भगवान ने हमारे लिए कुछ अच्छा ही सोच रखा था।
माँ हमेशा कहा करती थी कि भगवान कभी भी अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं होने देंगे। जब मैं अपने पति, सोलमेट, साथी और जीवन के सबसे अच्छे दोस्त सोमवीर से मिली, तो मुझे इस बात पर और भी ज़्यादा विश्वास होने लगा। सोमवीर ने ऐसा साथ दिया कि मेरे जीवन के हर हिस्से में अपनी जगह बना ली और उस ने हर रूप में हर तरह से मेरा साथ दिया। यह कहना गलत होगा कि जब हम चुनौती का सामना कर रहे थे तब हम बराबर के भागीदार थे क्योंकि उन्होंने हर कदम पर त्याग किया और मेरे दुखों को मुझ से दूर रखा और हमेशा मेरी ढाल बन कर खड़े रहे। उन्होंने मेरे जीवन के सफ़र को ख़ुद से ऊपर रखा और पुरी निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी से मेरा साथ दिया। अगर वह नहीं होते, तो मैं यहाँ होने, ख़ुद की लड़ाई जारी रखने और हर दिन का आंखें में आंखे डाल कर सामना करने की कल्पना भी नहीं कर पाती। यह सिर्फ़ इस लिए संभव हो सका क्योंकि मैं जानती हूं कि वह हमेशा मेरे साथ खड़े हैं, मेरे पीछे भी और जब ज़रूरत होती है मेरे आगे भी, हमेशा मेरी ढाल बन कर।
मेरे यहाँ तक के सफ़र ने मुझे बहुत से लोगों से मिलने का मौका दिया, ज़्यादातर अच्छे और कुछ बुरे।
पिछले डेढ़ दो सालों में, कुश्ती के मैट पर और बाहर बहुत कुछ हुआ है। मेरी ज़िन्दगी में बहुत से मोड़ आए, ऐसा लगा जैसे ज़िन्दगी हमेशा के लिए रुक गई है और हम जिस खाई में गिर चुके थे उस से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। लेकिन मेरे आसपास के लोग अंदर से ईमानदार थे, उनके पास मेरे लिए अच्छी सोच और भरपूर साथ था। वह लोग और उन का मुझ पर भरोसा इतना पक्का था कि उन्हीं की वजह से मैं चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ती गई और पिछले दो सालों का सफ़र पूरा कर सकी।
रेस्लिंग के रिंग में मैट पर मेरे सफ़र के लिए, पिछले दो सालों में मेरी सहयोगी टीम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
डॉ. दिनशॉ पारदीवाला
यह नाम भारतीय खेलों की दुनिया में नया नहीं है। मेरे लिए और मुझे लगता है कि कई अन्य भारतीय एथलीटों के लिए, वह सिर्फ़ एक डॉक्टर नहीं बल्कि भगवान द्वारा डॉक्टर के रूप में भेजा गया एक फ़रिश्ता हैं। जब मैं चोटों का सामना करने के बाद ख़ुद पर विश्वास खो बैठी थी, तो उन के विश्वास, मेहनत और मुझ पर भरोसेे ने ही मुझे फिर से खड़ा किया। उन्होंने एक बार नहीं बल्कि (दो बार घुटनों और एक बार कोहनी का) तीन बार मेरा ऑपरेशन किया है और मुझे दिखाया है कि इंसान का शरीर कैसे बार-बार टूट कर फ़िर से खड़ा हो सकता है। उन के काम और भारतीय खेलों के प्रति उन के समर्पण, नेकी और ईमानदारी पर कोई इंसान तो क्या भगवान भी शक नहीं कर सकता। उनके काम और समर्पण के लिए मैं उन की और उन की पूरी टीम की हमेशा आभारी रहूंगी। पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल के हिस्से के रूप में उनका मौजूद होना सभी साथी एथलीटों के लिए भगवान का तौहफ़ा था।
डॉ. वेन पैट्रिक लोम्बार्ड
एक एथलीट अपने जीवन में जिस सबसे कठिन रास्ते का सामना करता है उन्होंने मेरी उस में मदद की, एक बार नहीं बल्कि दो बार। विज्ञान अपनी जगह है, उन की विशेषज्ञता पर कोई शक नहीं है, लेकिन जटिल चोटों का इलाज करने का उन का दयालु, धैर्यवान और रचनात्मक दृष्टिकोण मुझे बहुत आगे तक ले गया। दोनों बार जब मुझे चोट लगी, मेरा ऑपरेशन किया गया तो उनकी मेहनत और कोशिशें ही थीं जिन्होंने ज़मीन से फिर उठ खड़े होने में मेरी मदद की। उन्होंने मुझे सिखाया कि कैसे एक दिन में एक कदम आगे बढ़ाना है। उन के साथ मेरा हर सैशन स्वभाविक रूप से तनाव को दूर करने वाला महसूस हुआ। मैं उन्हें एक बड़े भाई की तरह मानती हूँ, चाहे जब हम कभी एक साथ काम नहीं भी कर रहे होते फिर भी वह हमेशा मेरा हालचाल पूछते रहते।
वॉलर अकोस
मैं उनके बारे में जो कुछ भी लिखूंगी वह हमेशा कम ही होगा। महिला कुश्ती की दुनिया में, मैंने उन्हें सबसे अच्छा कोच, सबसे अच्छा मार्गदर्शक और सबसे अच्छा इंसान पाया है, जो किसी भी मसले को धैर्य, संयम और आत्मविश्वास के साथ संभाल सकते हैं। उन के शब्दकोश में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं है और जब भी (हम कुश्ती के मुकाबले में) मैट पर या बाहर किसी मुश्किल हालात का सामना करते तो वह हमेशा उस से निपटने के लिए तैयार मिलते। ऐसा भी समय आया जब मैं अपने आप पर सवाल कर रही थी और मैं अपने अंदर के फोक्स से दूर जा रही थी तो उन्हें पता होता था मुझे क्या कह कर अपने रास्ते पर वापस लाना है। वह कोच से ज़्यादा मेरे लिए कुश्ती की दुनिया में मेरा परिवार थे। उन के अन्दर मेरी जीत और सफ़लता का श्रेय लेने की भूख नहीं थी, वह हमेशा विनम्र रहते और जैसे ही उनका काम कुश्ती के मैट पर पूरा हो जाता, वह एक कदम पीछे हट जाते थे। लेकिन मैं उन्हें वह श्रेय देना चाहती हूं जिस के वह हकदार हैं। उन के त्याग और मेरी ख़ातिर अपने परिवार से दूर रहने के लिए, मैं किसी भी तरीके से कभी भी उन का शुक्रिया अदा नहीं कर पायूंगी। जो समय वह अपने दो नन्हें बेटों के साथ नहीं बिता सके मैं कभी उस की भरपाई नहीं कर पायूंगी। मैं सोच कर हैरान होती हूँ कि क्या उन नन्हें बालकों को पता है कि उन के पिता ने मेरे लिए क्या किया है और क्या वह समझ सकते हैं कि मेरे लिए उन के पिता का योगदान कितना महत्वपूर्ण रहा है। आज मैं बस इतना कह सकती हूँ कि अगर आप नहीं होते, तो मैंने कुश्ती में जो कुछ भी किया, वह नहीं कर पाती।
अश्विनी जीवन पाटिल
सन 2022 का वो पहला दिन जब हम मिले, उस दिन उन्होंने जिस तरह से मेरा ख़्याल रखा, उनका आत्म-विश्वास मुझे यह महसूस करवाने के लिए काफ़ी था कि वह पहलवानों और इस मुश्किल खेल को संभाल सकती हैं। पिछले ढाई सालों में वह इस सफ़र में मेरे साथ ऐसे रही हैं जैसे यह उन का अपना सफ़र हो। हर मुकाबला, जीत और हार, हर चोट और ठीक होने का सफ़र उन का भी उतना ही था जितना मेरा। यह पहली बार है जब मैं ऐसी फिजियोथेरेपिस्ट से मिली जिसने मेरे और मेरे सफ़र के प्रति इस तरह का समर्पण और सम्मान दिखाया है। सिर्फ़ हम दोनों ही असल में जानते हैं कि हमने हर ट्रेनिंग से पहले, हर ट्रेनिंग सैशन के बाद और ट्रेनिंग के अंतराल के दौरान क्या कुछ सहा है।
तजिंदर कौर। पिछले साल सर्जरी के बाद मेरा वजन घटाने का सफ़र उतना ही चुनौतीपूर्ण था जितना कि चोट से उबरने का। चोट का ख़्याल रखते हुए 10 किलोग्राम से अधिक वज़न कम करना और ओलंपिक की तैयारी करना कोई आसान काम नहीं था। मुझे याद है जब मैंने आप को 50 किलोग्राम कैटेगरी में खेलने के बारे में बताया था और आपने मुझे भरोसा दिलाया था कि हम चोट का ख़्याल रखते हुए इस लक्ष्य को हासिल कर लेंगे। आप का लगातार मेरा हौसला बढ़ाना और ओलंपिक गोल्ड मैडल जीतने के हमारे लक्ष्य को बार-बार याद करवाना मेरे लिए वज़न घटाने में मददगार साबित हुआ।
OGQ और टीम। (विरेंन रासकिन्हा सर, यतिन भटकर, मुग्धा बर्वे – मनोचिकित्सक (साइकोलोजिस्ट) , मयंक सिंह गरिया – SnC कोच, अरविंद, शुभम, प्रयास, युगम – स्पारिंग पार्टनर्ज़ और पर्दे के पीछे काम करने वाले बाकी अनगिनत लोग)
भारती ने खेल के क्षेत्र में जो तरक्की का सफ़र तय किया है, OGQ के योगदान के बिना यह सफ़र कैसे हो पाता, मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। पिछले दशकों में खिलाड़ियों की इस पूरी टीम ने जो हासिल किया है, वह OGQ की टीम में शामिल लोगों और खेलों के प्रति उनके ईमानदार जुनून ने ही करवाया है। हाल के सालों में सिर्फ़ इन के संंबल और निरंतर सहयोग से ही मैं दो सबसे मुश्किल स्थितियों से निकल पाई। वह दो मौके थे, पहला – टोक्यो ओलंपिक के बाद 2021 में और दूसरा – पहलवानों के विरोध-प्रदर्शन और 2023 में ACL सर्जरी के बाद। एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रा, जब वह मिलने और यह सुनिश्चित करने ना आए होंं कि मैं सुरक्षित हूं, आगे बढ़ रही हूं और सही रास्ते पर हूँ। मैं और इस पीढ़ी के मेरे कई साथी एथलीट्स भाग्यशाली हैं कि हमें OGQ का साथ मिला, यह ऐसी संस्था है जिसे लेजेंडरी एथलीटों ने बनाया और वही इसे चलाते हैं और यही लेजेंडरी लोग हमारा ख़्याल रखते हैं।
सीडीएम गगन नारंग और ओलंपिक टीम सहयोगी स्टाफ
मेरी गगन सर से पहली मुलाकात ऐसे माहौल में हुई कि मैं उन्हें नज़दीक से जान सकी। उनकी दयालुता और एथलीट के प्रति सहानुभूति ने मुझे यह एहसास दिलाया कि वे जानते हैं कि बेहद तनाव की स्थिति में क्या करना ज़रूरी होता है। मैं दिल से पूरी टीम द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करना चाहती हूँ जिन्होंने खेल गांव में भारतीय टीम के लिए दिन-रात मेहनत की। रिकवरी रूम की टीम, मालिश करने वालों ने ऐसा काम किया जिस तरह का मैंने अपने पूरे करियर में पहले कभी अनुभव नहीं किया था।
पहलवानों के विरोध के दौरान मैं भारत में महिलाओं की पवित्रता और हमारे भारतीय तिरंगे की पवित्रता और सम्मान की रक्षा के लिए कड़ा संघर्ष कर रही थी।
लेकिन जब मैं 28 मई 2023 की तस्वीरों में अपने आप को तिरंगे के साथ देखती हूँ, तो यह मुझे परेशान करता है। मेरी तमन्ना थी कि इन ओलंपिक खेलों में भारतीय तिरंगा शिखर पर लहराए, ताकि तिरंगे के साथ मेरी तस्वीर हाेती जो असल में उस के सम्मान को दर्शाता और इसकी पवित्रता को फिर से स्थापित करता। मुझे लगा कि तिरंगे और कुश्ती के सम्मान को जो ठेस पहुंची है, ऐसा कर के उसे सही तरीके से ठीक किया जा सकता है । मैं सचमुच अपने भारत के देशवासियों को यह कर के दिखाना चाहती थी।
कहने के लिए और बहुत कुछ है और बताने के लिए और बहुत कुछ है, लेकिन शब्द कभी भी पर्याप्त नहीं होंगे और शायद जब लगेगा सही समय है तो शायद मैं फिर बाेलूंगी।
6 अगस्त की रात और 7 अगस्त की सुबह के बारे में मैं केवल इतना कहना चाहती हूँ कि हम ने हार नहीं मानी, हमारी कोशिशें थमी नहीं और हम ने आत्मसमर्पण नहीं किया, लेकिन घड़ी की सुईयां रुक गई और ना समय हमारे लिए सही था और ना ही मेरी किस्मत।
मेरी टीम, मेरे साथी भारतीयों और मेरे परिवार को लगता है कि हम जिस लक्ष्य हासिल करने में जुटे हुए थे और जिसे हासिल करने की हम ने तैयारी की थी, वो पूरा नहीं हुआ है, वो कुछ हमेशा अधूरा रहेगा, और चीजें शायद फिर कभी वैसी नहीं हो सकेंगी। शायद बदले हुए हालात में, मैं ख़ुद को 2032 तक खेलते हुए देख सकती हूँ, क्योंकि मेरे अंदर की लड़ाई और मेरे अंदर की कुश्ती हमेशा वहीं रहेगी। मैं अंदाज़ा नहीं लगा सकती कि भविष्य के गर्भ मेरे लिए क्या छिपा है और इस सफ़र में आगे क्या आने वाला है जो मेरा इंतज़ार कर रहा है, लेकिन मुझे इतना भरोसा है कि मैं अपनी सोच के लिए और सही चीज़ के लिए हमेशा लड़ती रहूंगी।
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