पटना रेज़ीडेंसी में आख़िर क्या हुआ?

पटना रेज़ीडेंसी में आख़िर क्या हुआ?
‘नई धारा’ राईटर्स रेजीडेंसी’ निर्णायक मंडल

सबसे पहला सवाल तो यही है कि आख़िर ‘नई धारा’ रेज़ीडेंसी में हुआ क्या? पीड़िता का क्या पक्ष है? जिस पर आरोप लगे हैं, उस का क्या कहना है? संस्था ‘नई धारा’ ने पूरे प्रकरण पर क्या किया और कहा? सिलसिलेवार तरीके से इन सवालों से संबंधित जानकारियां यहां रख रहे हैं।

सबसे पहले यहां पर पीड़िता और उनके पति से बातचीत कर लिखी गई विख्यात लेखक एवं प्रोफ़ैसर असगर वजाहत की पोस्ट हम यहां रख रहें हैं। उस के आगे पीड़िता, उनके पति और तथ्यों को बयान करती विहाग वैभव द्वारा लिखी एक पोस्ट भी यहां शामिल की गई है। जिन पर आरोप लगे हैं उन का पक्ष पोस्ट के अंत में जोड़ा गया है।

सबसे पहले डॉ. असगर वजाहत की पोस्ट-

मैं शिवांगी गोयल और उनके पति राहुल पांडे को अच्छी तरह जानता हूं.

राहुल पांडे ने जामिया के हिंदी विभाग और मास कम्युनिकेशन सेंटर से मीडिया का कोर्स किया था. वे पिछले कुछ साल से मुंबई में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.

शिवांगी ने अंग्रेजी में एम ए और नेट क्लियर किया था. वे बहुत प्रतिभाशाली छात्र हैं. आजकल इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में पीएच.डी. कर रही हैं.

इन दोनों लोगों से बातचीत और उनके द्वारा साक्ष्यों की चर्चा करने के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि शिवांगी के यौन उत्पीड़न का मामला बहुत गंभीर है.

यौन उत्पीड़न की इस घटना ने उन दोनों के रचनात्मक जीवन को झंझोड़ कर रख दिया है. दोनों मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत आहत है. वे एक ट्रामा से गुजर रहे हैं.

शिवांगी के यौन उत्पीड़न के आरोपी कृष्ण कल्पित का किसी भी तरह से बचाव करने वाले या इस प्रसंग को दूसरी दिशा की देने की कोशिश करने वाले, दरअसल इस उत्पीड़न में शामिल माने जाएंगे.

शिवांगी और राहुल उत्पीड़न के इस मामले को आगे तक ले जाना चाहते हैं.

यह बहुत संतोष की बात है कि हिंदी के साहित्यकार और हिंदी मीडिया पीड़िता के साथ खड़े हैं. -असगर वजाहत

अगली फेसबुक पोस्ट विहाग वैभव की है, जो प्रकरण का विवरण बता रहे हैं। साथ में इस प्रकरण के बारे में उनके विचार दर्ज हैं, जिन्हें हम हूबहू लगा रहे हैं-

चंकी पाण्डेय अपने बयान से मुकर गया है

कृष्ण कल्पित अपराधी है। उसने आठ जून की शाम पाँच बजे के आसपास अपनी को-रेजिडेंस के कमरे में घुसकर तब जबर्दस्ती की जब लेखिका अपनी कॉफी पीकर खत्म कर रही थीं।

मैं चाहता था कि यह बातें नयी धारा की ओर से आएँ या विक्टिम की ओर से। विक्टिम से उम्मीद इसलिए नहीं कर पा रहा था कि पीड़ित की मनोदशा से वाकिफ हूँ।

इस यौन हिंसा में शराब पौरुषेय भय का पहला कृत्रिम हथियार है। अदृश्य मगर सर्वथा उपस्थित।

घटना आठ जून को हुई। पीड़ित ने बहुत साहस दिखाते हुए अगले दिन कृष्ण कल्पित से सवाल जवाब किया। कृष्ण कल्पित नें सामंती दम्भ में ही सही पर अपना गुनाह स्वीकार किया। (पीड़ित के पास वाइस रिकार्डिंग है इसकी, जिसे वह सिर्फ अदालत में पेश करेंगी, जिसे नयी धारा सुन चुकी है।) सात जून की रात को कृष्ण कल्पित ने पीड़ित को आपराधिक उद्देश्यों के मैसेज भेजे। सम्भव है कि वह जल्द ही आप सबके लिए पीड़ित की तरफ से उपलब्ध हो।

इसके आगे की घटना पीड़ित को अधिक अवसाद में लेकर जाएगी और नयी धारा को गुनाह में।

घटना आठ जून को हुई। दस जून को पीड़ित ने ‘नयी धारा’ ‘राइटर्स रेसीडेंसी’ के व्यवस्थापकों को ईमेल लिखकर शिकायत की। नयी धारा ने पीड़ित का ख़याल रखने का आश्वासन दिया। जहाँ तक मैं समझ पाया नयी धारा की कोशिश रही कि बात बाहर न जाए और इतनी पूँजी लगाकर खड़ी हुई संस्था की साख बच जाए; इस क्रम में बहुत गुपचुप तरीके से कृष्ण कल्पित को पटना से बाहर भेज दिया।

दिन भी रातों जैसे होते हैं। रातें यातनागृह हैं अब।

पीड़ित की मनोदशा गिरने लगी। एकमात्र कारण था कि पीड़ित को जिस न्याय की उम्मीद थी वह नहीं हुआ। जिसका डर था वही हुआ। ताकत का सर्वग्रासी चरित्र प्रकट होने लगा। विक्टिम की सोशल मीडिया चुप्पी संदेह के घेरे में आने लगी। कृष्ण कल्पित अपने अपराध से मुकर गया। थोड़े समय बाद ही वह अपने मुकरने से भी मुकर गया।

पटना-घटना ने हिन्दी के लैंगिक चरित्र को उघाड़ कर रख दिया। यहाँ वही सांस्कृतिक दुर्गंध है जो हमारी समकालीनता पर मिथकीय काल से गिर रही है। जिसके समाजशास्त्र में शोषण और अन्याय का उत्सव है। जिसका नैतिकशास्त्र स्वयं अपराधी लिख रहा है।

मुझे नहीं पता यहाँ कहाँ जाकर रुकेगा पर मैं कृष्ण कल्पित को जेल में देखना चाहता हूँ और उसके समर्थकों को भाषा के बाहर।

– विहाग वैभव

(अगर इसी भाषा में कृष्ण कल्पित भी कवि है तो मुझे कवि विहाग वैभव न समझें)

पूरे प्रकरण में पीड़ित शिवांगी गोयल पर बोलने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। जबकि उनकी निजता के सम्मान और संस्था की ज़िम्मेदारी की प्रमुखता के मद्देनज़र उनका समर्थन कर रहा एक बड़ा हिस्सा मांग कर रहा था कि इस पर ‘नई धारा’ अपना पक्ष रखे। आज जब ‘नई धारा’ ने अपना संक्षिप्त पक्ष सामने रखा तो शिवांगी गोयल ने उसे अपने फेसबुक प्रोफ़ाईल पर सांझा करते हुए अपना पक्ष और ‘नई धारा’ को लिखी अपनी ईमेल का स्क्रीन शाॅट लगाया।

यहां पर शिवांगी की पोस्ट दी जा रही है-

मुझे जो कहना है वो कहने के लिए अलग से एक लम्बी पोस्ट लगेगी (लिखूँगी) , फ़िलहाल ये कि आवाज़ उठाई गई थी तभी आप तक पहुँची है।

‘नई धारा’ को लिखे गए शिकायत पत्र ई-मेल की ईबारत कुछ इस प्रकार है-

होना मुझे अन्दर से झकझोर दे रहा है जब मुझे लग रहा है कि ये इतना बड़ा नाम है कि मैं इसके खिलाफ़ कुछ कर नहीं सकती और ये सिर उठा के हमेशा की तरह घूम रहा है, घूमता रहेगा।
इस रेज़िडेन्सी में आने से पहले मुझे यह आश्वासन दिया गया था कि यहाँ मुझे वह माहौल मिलेगा जिससे मैं शान्त चित्त से पढ़-लिख पाऊँगी। अब यहाँ चित्त की शान्ति तो दूर इस आदमी की एक नीच हरकत की वजह से मेरी सुरक्षा और नई-धारा रेज़िडेन्सी कार्यक्रम पर सवाल उठेंगे। साथ ही, उसकी गलत हरकत की वजह से डर के मैं यह कार्यक्रम बीच में छोड़कर नहीं जाना चाहती, क्योंकि जिसकी गलती होती है उसकी जगह सज़ा पीड़ित को मिले, ऐसा होने अन्याय होगा और मैं स्वयं के साथ अन्याय होते नहीं देख सकती हूँ। मुझसे कहा गया था कि मैं बताऊँ, अपनी सुविधानुसार, मैं क्या चाहती हूँ – या तो कल्पित को वापस भेज दिया जाए या किसी को पर्मानेन्टली घर में देख-रेख के लिए रखा जाए।
मैं इसके बीच की तीसरी चीज़ चाहती हूँ कृष्ण कल्पित वरिष्ठ लेखक और नीच आदमी है, इँ दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए और नई धारा के सम्मान को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक रूप से ना सही, लेकिन नई धारा द्वारा भेजे गए किसी ऑफ़िशियल व्यक्ति की मौजूदगी में कृष्ण कल्पित मुझसे लिखित में माफ़ी माँगे। वो बड़े लेखक हैं, अपने हाथों से एक माफ़ीनामा अपने ऑटोग्राफ (हस्ताक्षर) के साथ लिख के दे सकते हैं मेरे लिए। यदि वो अपना माफ़ीनामा लिखित में देने से इनकार कर दे तो उसे रेज़िडेन्सी छोड़कर जाने के लिए कहा जाए। उसके पास नई धारा के तरफ़ से औपचारिक तौर पर एक ईमेल/लेटर भेजा जाए (किसी ऑफिशियल के यहाँ आ जाने के बाद) जिसमें सिर्फ़ ये दो विकल्प रखे जायें कि वह अपनी गलती के लिए लिखित में शिवांगी गोयल से माफ़ी माँगे अन्यथा सूर्यपुरा हाउस छोड़कर चला जाए। इससे मेरे आत्म सम्मान को ज़रूरी बल मिलेगा। कल्पित को पता होना चाहिए कि हर लड़की उसके लिए उपलब्ध नहीं है, हर लड़की चुप नहीं रहेगी, वो इतना बड़ा लेखक नहीं है कि एक आई पी एस ऑफिसर के घर के अन्दर अपने से चालीस साल छोटी बच्ची के साथ छेड़छाड़ करके गर्व से नहीं घूम सकता और नई-धारा के लोगों को उसकी हरकत का पता है।
यदि साहित्यिक निवास में, साहित्यिक परिवेश में भी एक महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध छू के खुलेआम घूमा जा सकता है तो साहित्य के बाहर इसकी कितनी संभावनाएँ बचेंगी।
मुझे विश्वास है कि आपकी टीम मेरी मानसिक व्यथा को समझते हुए औपचारिक तौर पर इसका हल निकालेगी।
धन्यवाद,
शिवांगी गोयल।

इसी के साथ शिवांगी गोयल के पति राहुल पांडे ने उन्हें टैग करते हुए, एक स्पष्ट पोस्ट लिखी है। उन्होंने पीड़िता की निजता का हनन करने वालों को कानूनी कार्यावाही की बात भी कही है।

यहां पर राहुल पांडे की पोस्ट दे रहे हैं-

सबसे पहले उन लोगों का शुक्रिया जिन्होंने लड़की की पहचान गैरकानूनी तरीके से पब्लिक की। उसकी निजता और उसकी सुरक्षा का ख्याल किए बिना।

आपको क्या लगा लड़की डर जाएगी?

उन लोगों का भी शुक्रिया जिन्होंने लड़की को ना जानने के बाद भी उसके चरित्र पर सवाल उठाए और रेजिडेंसी जैसे शब्द को सहवास तक कह डाला।

आपको क्या लगा आपकी सस्ती ट्रोलिंग से लड़की डर जाएगी?

उन लोगों का भी शुक्रिया जिन्होंने आरोपी की जात पूछी। उम्मीद है आप जान गए होंगे कि आरोपी किस जात का है।

उस लड़की के पास सारे सबूत हैं जिनके आधार पर आरोपी को रेजिडेंसी से बाहर का रास्ता दिखाया गया।

आप शायद समझ नहीं सकते कि ऐसे किसी मामले में किसी महिला को किन सामाजिक और मानसिक कष्ट से गुजरना पड़ता है। खैर आप समझेंगे भी कैसे! आप ही वो झुंड हैं।

आपको दिक्कत थी कि वो लड़की तस्वीर में मुस्कुरा रही थी! हाँ वो मुस्कुराएगी क्योंकि रोना उसको चाहिए जिसने गलत किया है।

और हाँ, आप सोशल मीडिया ट्रायल कर रहे हैं ना तो ये सुनिए आप सब की कही हर एक बात, हर बनाए हुए गलत नैरेटिव का चिट्ठा भी इकट्ठा है! और ये सब समय आने पर माननीय न्यायालय में उपलब्ध करवाए जाएंगे।

हाँ, ये काम आपके दबाव और आपकी मर्ज़ी से नहीं होगा, ये फैसला वो साहसी लड़की ही करेगी।

Shivangi Goel तुम्हारे साहस को सलाम है।

तुम मुस्कुराओ। मुस्कुराते हुए सुंदर लगती हो। तुम्हारी हिम्मत आवाज़ है उन सभी महिलाओं की जो अपने परिवार और समाज के डर से चुप रहीं।

खूब खुश रहो। आग लगा दो इन सबकी नींद में। इनको लगता है पीड़िता बिलखती है। बिलखा दो इन सबको।

रात के साढ़े तीन बजे हैं

जाने कैसी सोच में गुम हूँ

कितनी रीलें देख चुकी हूँ

मन फिर भी तो बुझा हुआ है

जीत गई या हार रही हूँ

अब तक कोई खबर नहीं है

अम्मा-बाबा जगे हुए हैं, हैराँ से हैं

भाई मुझसे लिपट गया था

रो उट्‌ठा था

उसके आँसू याद आ रहे

उसकी बेचैनी भी मेरे पोर-पोर में जाग उठी है

सब अन्दर से टूट गया है

तुम पूछोगे किसने तोड़ा

एक नाम ले पाऊँगी क्या ?

मेरी आँखें आसमान के उस तारे को देख रही हैं

तुम भी देखो

देखो मेरे नानाजी हैं तारा बनकर

बोल रहे हैं मुझसे लोगों की मत सुनना

उम्र, पढ़ाई, नाम, पदक – सब बेमानी है

लोग कहेंगे चुप रहना, सब सह लेना

लोगों की परिभाषाएँ सब बेमानी है

दरवाज़े पर खटके से दिल काँप गया है

छुपकर देखा – कोई नहीं है-बेचैनी है

रात अँधेरी, कोई नहीं है, बेचैनी है

नींद कहाँ है?

शायद बिस्तर के नीचे है, झुककर देखें?

डर लगता है – किससे लेकिन?

एक नाम ले पाऊँगी क्या? सख़्त मनाही है

डरना हो तो डर सकती हो लेकिन सख़्त मनाही है

न! तुम कोई नाम न लेना!

रोते-रोते मर जाना पर – नाम न लेना

बड़े लोग हैं, बड़े नाम हैं

कल की लड़की – कौन हो तुम?

तुम्हें कौन सुनेगा?

रात समेटो, नींद उठाओ

ठीक तो हो तुम; ठीक नहीं क्या?

क्या पागलपन रोना-धोना

मुँह पर कस के पट्टी बाँधो

चुप – सो जाओ!

– शिवांगी (19/06/2025)

‘नई धारा’ ने फेसबुक पोस्ट के ज़रिए अपना पक्ष कुछ इस तरह से रखा है-

हम ‘नई धारा’ राइटर्स रेजीडेंसी के बारे में उठाए गए गंभीर मामले के बारे में पूरी संवेदनशीलता से अवगत हैं। हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि इस प्रकार के सभी मामलों को हम अत्यंत गंभीरता से लेते हैं। हम शिकायतकर्ताओं के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। शिकायत प्राप्त होते ही हमने तत्परता से निष्पक्ष जांच की प्रक्रिया शुरू की और सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श के बाद, हमने इस मामले में आवश्यक कदम उठाए। हमारी जाँच और उसके बाद उठाये गये कदम से शिकायतकर्ता पूर्णतया संतुष्ट हैं।

अपने प्रतिभागियों और व्यापक समुदाय द्वारा नई धारा पर जताए गए विश्वास को हम महत्व देते हैं। आशा है यह वक्तव्य इस गंभीर मामले को लेकर किसी भी तरह की अटकल का अंत करेगा।

पूरे प्रकरण पर कृष्ण कल्पित ने अपना पक्ष एक फेसबुक पोस्ट के रूप में रखा था। जैसे कि विहाग वैभव की पोस्ट में कहा गया है, बाद में उन्होंने यह पोस्ट हटा दिया। यूं फेसबुक यह पोस्ट कई जगह पर टिप्पणी के रूप में घूम रहा है। यहां पर हम कश्यप किशोर मिश्रा की पोस्ट पर दर्ज की गई कृष्ण कल्पित की टिप्पणी को यहां लगा रहे हैं।

कृष्ण कल्पित की पोस्ट-

अब तक के इतिहास में किसी हिंदी लेखक पर इतना सुनियोजित, घिनौना और भीषण आक्रमण शायद ही कभी हुआ हो, जो पिछले सप्ताह भर से मुझ पर हो रहा है।

पिछले कुछ दिनों से मुझ पर सोशल मीडिया पर जो मनगढ़ंत और काल्पनिक आरोप लगाए जा रहे हैं, उनसे मैं इनकार करता हूं। यह मेरे खिलाफ़ एक सुनियोजित षडयंत्र है, जिसमें हिंदी के बड़े घरानों के साथ, लेखक संगठन, कुछ कथित लेखक, एक बेरोज़गार संपादक और मेरे अनगिनत दुश्मन शामिल हैं।

बहुत वेदना के साथ यह लिख रहा हूं। मुझे लगता है कि हिंदी संसार को कवियों की नहीं, हत्यारों की ज़रूरत है।

इस बार शेर को भेड़ियों ने घेर लिया।

ख़ुश रहिए। आपको कवियों की क्या ज़रूरत? आप अपने षड्यंत्रों, झूठ और फ़रेब के साथ जीवित रहिए।

मुझे मेरी भेड़ बकरियां चराने दीजिए!

नमस्कार !

इस पोस्ट के तो कृष्ण कल्पित द्वारा अपनी फेसबुक प्रोफाइल से हटा लिया गया है, लेकिन उस के साथ ही उन्होंने एक लीगल नोटिस भी लगाया है। बताया जा रहा है कि वह यह लीगल नोटिस उनके ख़िलाफ़ पोस्ट लिखने वालों की इनबॉक्स में भेज रहे हैं।

यहां पर कृष्ण कल्पित द्वारा अपने फेसबुक पर जारी किए गए लीगल नोटिस की कॉपी लगा रहे हैं-

krishan-kalpit-shivangi-goel-patna-residency-sexual-harrasment-case

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एक नज़र ईधर भी

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