बीते दिनों पंजाब के अमृतसर के नज़दीक अजनाला शहर में हुए घटनाक्रम के बाद देश का मीडिया लगातार ऐसा माहौल बना रहा है, जैसे पंजाब में तालिबान का कब्ज़ा हो गया हो। यह घटनाक्रम धार्मिक युवा नेता खालिस्तान के समर्थक अमृतपाल सिंह की अगवाई में अंजाम दिया गया। क्या पंजाब का माहौल सचमुच खराब हो गया है? क्या खालिस्तान बनने जा रहा है? क्या पंजाब जल रहा है? इस सवालों के जवाब जानने के लिए सबसे पहले पूरा घटनाक्रम को समझना होगा।
अमृतपाल सिंह कौन हैं?
अमृतपाल सिंह एक युवा सिक्ख सामाजिक कार्यकर्ता हैं। भारत में जब किसान आंदोलन चल रहा था तो एक सामाजिक संगठन का गठन किया गया था जिस का नाम ‘वारिस पंजाब दे’ रखा गया। पंजाबी एक्टर एवं सामाजिक कार्यकर्ता दीप सिद्धू इसके प्रमुख बने। उस समय अमृतपाल सिंह दुबई में अपने चाचा की ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम कर रहे थे। तब वह केशधारी सिक्ख नहीं थे। किसान आंदोलन के दौरान वह दीप सिद्धू से सोशल मीडिया के जरिए प्रभावित हुए और उनके समर्थन में सोशल मीडिया में प्रचार करने लगे। जब फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की सड़क हादसे में मौत हो गई तो वारिस पंजाब दे संगठन के एक हिस्से ने अमृतपाल सिंह को उस का प्रमुख बना दिया।
कुछ महीने पहले अमृतपाल सिंह दुबई से पंजाब के तरन तारन ज़िले के अधीन आते अपने पैतृक गांव लौटे। किसान आंदोलन के समय से ही वह सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय थे। वह पंजाब के सिक्खों से संबंधित मानव अधिकारों के बहुत से मामलों पर सोशल मीडिया के जरिए बातचीत कर रहे थे। जिस वजह से उनके काफी सारे फॉलोवर बन गए थे।
पंजाब में एंट्री
पंजाब आने के बाद उन्होंने पंजाब के प्रमुख धार्मिक स्थल पर जाकर अमृतपान किया और सिख वेष धारण किया। इन्हीं दिनों वह संत जरनैल सिंह भिंडरावाला के गांव गए, जहां पर सिख रिवाजों के अनुसार उनकी दस्तारबंदी की गई। यह एक धार्मिक-सांस्कृतिक रस्म है। जब भी कोई सिक्ख पगड़ी बाँधना शुरू करता है तो उस समय उसकी दस्तारबंदी की रस्म अदा की जाती है।
बारहवीं तक पढ़े अमृतपाल सिंह शुरू से ख़ुद को भिंडरावाला के समर्थक बताते हैं। अपने भाषणों में वह संप्रभुता संपन्न सिक्ख स्टेट की मांग करते हैं, जिसे खालिस्तान का नाम दिया जाता है। यहां पर यह दर्ज करना भी आवश्यक है कि संत जरनैल सिंह भिंडरावाला ने कभी खालिस्तान की मांग नहीं की। लेकिन अमृतपाल सिंह स्पष्ट रूप से खालिस्तान की मांग कर रहे हैं। लेकिन वह बहुत बार दोहरा चुके हैं कि वह खालिस्तान की मांग शांतिपूर्ण तरीके से उठाते रहेंगे।
उन का कहना है कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शांतिपूर्ण ढंग से खालिस्तान की मांग करना देशद्रोह या अपराध नहीं है। वह कहते है कि जैसे हिंदु-राष्ट्र की मांग की जा सकती है, ठीक वैसे ही सिख-राष्ट्र की भी मांग की जा सकती है। हाल ही में बीबीसी को दिए अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने यह बात दोहराई है कि किसी भी देश से संप्रुभुता की मांग करने वाला कोई भी गुट हिंसा के रास्ते नहीं जाना चाहता।
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अजनाला की घटना का सच
अजनाला अमृतसर के नज़दीक एक ज़िला है। अमृतपाल सिंह इन दिनों वह पंजाब में एंटी ड्रग्स कैंपेन चला रहे हैं। इस के लिए वह गांव-गांव जा कर नशे के ख़िलाफ प्रचार कर रहे हैं। इस दौरान वह युवाओं को सिख धर्म के महत्व के बारे में बताते हैं और अमृतपान कर सच्चे सिख बनने के लिए प्रेरित करते हैं। उन का मानना है कि युवा सच्चे सिख बन कर ही नशे से दूर हो सकते हैं और मानसिक बल हासिल कर सकते हैं। उनके साथ काम करने वाले युवाओं का एक समूह चलता है। उन्हीं में एक युवा लवप्रीत सिंह तूफान है।
कभी अमृतपाल सिंह के ही समर्थक रहे एक अन्य युवक वरिंदर सिंह पिछले कुछ अर्से से अमृतपाल सिंह के कामकाज के ढंग की तीखी आलोचना कर रहे थे। इसी दौरान एक युवती ने अमृतपाल सिंह के साथ काम करने वाले एक युवक पर रिश्ता बना कर बाद में शादी ना करने का इल्ज़ाम लगाया। बताया जाता है कि वरिंदर सिंह ने उस युवती की अमृतपाल सिंह से मिलने में मदद की। युवती ने अमृतपाल सिंह से मदद की गुहार लगाई।
बाद में वरिंदर सिंह ने इल्ज़ाम लगाया कि अमृतपाल सिंह और उनके कुछ साथियों, जिस में लवप्रीत सिंह तूफान भी शामिल है ने वरिंदर को बातचीत के लिए बुलाया। वह उसे अपनी कार में एक टयूबवैल पर ले गए। जहां पर अमृतपाल और उसके साथियों ने उस से मारपीट की और धमकाया। जबरदस्ती उसके माफ़ीनामे की एक वीडियो रिकार्ड की गई। उसे वरिंदर को अपने फेसबुक पर अपलोड करने को कहा गया।
वहां से छूटने के बाद वरिंदर ने अगले दिन अजनाला पुलिस थाने में इस घटना की रिपोर्ट लिखवाई। इस पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज करते हुए अमृतपाल सिंह सहित कुछ दर्जन अनजान लोगों को नामज़द किया। उसी सिलसिले में अजनाला पुलिस ने लवप्रीत सिंह तूफान को उस के गांव से गिरफ़्तार किया और थाने में बंद कर दिया।
अमृतपाल का दावा है कि उन्होंने प्रैस कॉन्फ्रेंस कर लवप्रीत सिंह तूफान की बेगुनाही के सुबूत पेश किए और पुलिस को जल्द जांच कर लवप्रीत को छोड़ने की बात कही। उधर पुलिस पर लवप्रीत को टॉर्चर करने का इल्ज़ाम भी लगा। एक हफ़्ते तक भी जब पुलिस सुबूतों की जांच पूरी नहीं कर पाई तो अमृतपाल सिंह ने एक दिन का अल्टीमेटम दे कर अजनाला थाने तक मार्च निकालने का ऐलान किया।
23 फरवरी 2023 को वह गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी की अगवाई में अपने समर्थकों के साथ अजनाला थाने की ओर चल पड़े। थाने से कुछ दूरी पर पुलिस ने बैरिकेडिंग की हुई थी। वहां पर काफ़ी कम पुलिस बल तैनात था। एसएसपी थाने में मौजूद थे। अमृतपाल सिंह का दावा है कि उन के समर्थक शांतिपूर्ण मार्च कर रहे थे। उन्हें पुलिस द्वारा रोकने की कोशिश की गई। उसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज की शुरूआत की, जिस पर रोष में आए समर्थकों ने जवाबी हल्ला बोल दिया। इस दौरान बैरिकेडिंग तोड़ दी गई।
अमृतपाल सिंह अपने चुनिंदा समर्थकों के साथ थाने के अंदर गए। वहां पर उन्होंने एसएसपी के सामने अपने साथी से संबंधी सुबूत पेश किए और उसे छोड़ने की मांग की। इस दौरान पुलिस अधिकारियों से तल्ख़ी से बात करते हुए अमृतपाल सिंह का एक वीडीयो भी वायरल हुआ। पुलिस ने सुबूत देखने के बाद अगले दिन अदालती प्रक्रिया पूरी कर लवप्रीत सिंह तूफान को छोड़ने का आश्वासन दिया। अगले दिल अदालती कार्यवाही के बाद लवप्रीत को छोड़ दिया गया।
उसके बाद चारों तरफ से हुई तीखी आलोचना पर अमृतपाल सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर पुलिस पहले ही झूठी एफआईआर ना लिखती और पूरी मामले की जांच समय रहते सही ढंग से करती तो यह नौबत नहीं आनी थी।
मानव अधिकार वकील नवकिरन सिंह ने प्रो-पंजाब चैनल से बातचीत करते हुए वरिंदर सिंह से संबंधित मामले की एफआईआर को एक सोची-समझी रणनीति के अनुसार दर्ज की गई बताया। उन्होंने इस एफआईआर में बताई गई कहानी को शकी करार दिया। अमृतपाल सिंह अभी भी उस एफआईआर में नामज़द हैं। अब देखना होगा कि क्या पंजाब पुलिस उस मामले को आगे अदालत में ले जाती है या नहीं।
क्या पंजाब खालिस्तान बनने की ओर बढ़ रहा है?
इस घटना के दिन से ही गोदी मीडिया ने पंजाब के हालात बिगड़ने की रट लगा रखी है। यह भी कहा जा रहा है कि पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाला वाले 70-80वें के दशक जैसा माहौल लौटने वाला है। लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। सिखों सहित पंजाब के लोग बहुत शांतिप्रिय हैं। जिन्होंने पंजाब का वह काला दौर देखा है, वह कतई वैसे माहौल दोबारा पंजाब में देखना नहीं चाहते। उस दौर के लोग आज भी युवाओं को कहते नज़र आते हैं कि वैसे दौर फिर कभी ना आए।
किसान आंदोलन के दौरान भी पूरी दुनिया ने करीब एक साल तक पंजाब के सिखों का शांतिपूर्ण रूप देखा है। जब उन पर लगातार माओवादी और खालिस्तानी होने का इल्ज़ाम लग रहा था तब भी वह दिल्ली की विभिन्न सरहदों पर शांति से बैठे हुए थे। यही नहीं वह बिना किसी भेदभाव के आम लोगों और पुलिस वालों को लंगर खिला रहे थे। कहीं पर कंटीली तार लगाकर, ज़मीन में कीलें लगा कर एवं भारी पुलिस बल तैनात कर उन्हें उकसाने की भी कोशिश की गई, लेकिन वह शांत बैठे रहे। आज भी पंजाब की ज़्यादातर आबादी ऐसी ही है।
कौन हैं खालिस्तान समर्थक?
एक छोटा सा हिस्सा है जो खालिस्तान का समर्थक है। उस का कारण वह 1947 से लेकर आज तक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सिखों के साथ सौतेला व्यवहार करना बताते हैं। उनका कहना है कि देश की आज़ादी में सिखों ने सबसे ज्यादा कुर्बानियां दी। देश द्वारा लड़ी गई सभी फौजी जंगों में सिखों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और जानें दी। हमेशा से भारतीय सेना में सिखों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
उन का रोष है कि 1947 में जब पूरा देश आज़ादी का जशन मना रहा था, तब सरहद के दोनों तरफ पंजाबियों का ख़ून बहाया जा रहा था। आज़ादी के बाद भी सरकारों ने पंजाब से किए वादे नहीं निभाए। बल्कि ज़्यादातर मामलों में किए गए वादों के विपरीत व्यवहार किया। जिस वजह से बार-बार पंजाबियों को सरकारों के ख़िलाफ़ आंदोलन करना पड़ा। हर आंदोलन को निर्ममता से कुचला गया, पर किसी भी समस्या का समाधान कभी नहीं किया गया।
इस वजह से पंजाबियों ख़ास कर सिखों के एक हिस्से के अंदर रोष भरता गया, क्योंकि पंजाब में बहुसंख्यक होने के बावजूद उनके मानव-अधिकारों, संस्कृति, बोली और धर्म पर लगातार हमले होते रहे। इसी के रोष में 70 के दशक में हथियारबंद विरोध पैदा हुआ। इस का दंश पंजाब ने डेढ़ दशक झेला।
इस पूरे दौर में दोनो तरफ पंजाब का ही नुकसान हुआ। अलगाववादी और पुलिस दोनों ही तरफ पंजाब के युवा मरते रहे और सिखों की एक पूरी युवा पीढ़ी इस की भेंट चढ़ गई। इस दौरान फर्ज़ी एंकाऊंटर में हज़ारों सिख युवाओं को मार दिया गया। जिस के सुबूत जुटाने वाले मानव अधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा को भी मार दिया गया। दिल्ली में 1984 में हुए कत्लेआम में हज़ारों सिखों को ज़िंदा जला दिया गया। किसी भी मामले में आज तक इंसाफ़ नहीं हुआ।
पंजाबी बोलने वाले क्षेत्र दूसरे राज्यों को देना, पंजाब की राजधानी का विवाद, पंजाब की नदियों के पानी का असंवैधानिक बंटवारा, पंजाब में ड्रग्स के कारोबार को राजनीतिक संरक्षण, राज्य के मामलों में केंद्र सरकारों का असंवैधानिक अतिक्रमण समेत बहुत सारे ऐसे मामले हैं, जिन को लेकर एक हिस्से में काफ़ी रोष है। इन में से एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा खालिस्तान का समर्थक है, जिसे अस्सी के दशक में विदेश में शरण ले चुके कुछ खालिस्तानी प्रेरित करते रहते हैं। लेकिन यह इतना भी बड़ा वर्ग नहीं है कि जरनैल सिंह भिंडरवाला का दौर लौट आए।
खालिस्तान क्या है?
खालिस्तान के समर्थकों के मुताबिक यह एक ऐसा संप्रभुता वाला देश होगा जैसा महाराजा रणजीत सिंह का खालसा राज था। जिस में सभी धर्म के लोग सौहार्द से रहते थे। महाराजा रणजीत सिंह राज-काज सिख धर्म की मान्यताओं के अनुसार चलाते थे। उस में सभी धर्मों को हर क्षेत्र में बराबर का सम्मान और मौके मिलते थे। किसी के साथ भेदभाव और अन्याय नहीं होता था।
अमृतपाल का फायदा किस को?
भाजपा से रिश्ते टूटने के बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल पूरी तरह से हाशिए पर जा चुकी है। बादल परिवार से नाराज़ चल रहा पंजाब अवाम उन्हें वापस लाने के मूड में बिल्कुल नहीं है। कैप्टन-चन्नी सरकार की कारगुज़ारी और हार के बाद फ़िलहाल कांग्रेस भी पंजाबियों के मन से उतरी हुई है। इसी गुस्से को भुना कर बहुत बड़े बहुमत के साथ आई आम आदमी पार्टी की सरकार से भी लोग ज़्यादा ख़ु़ुश नहीं हैं। इस से पंजाब में एक बहुत बड़ा राजनीतिक वेक्यूम पैदा हो गया है। इस खालीपन को साधने में भाजपा पूरी तरह से जुटी हुई है। कांग्रेस से नाराज़ कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई दिग्गज नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
अब अगला लक्ष्य पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार को कमज़ोर साबित करना है। उस के लिए पंजाब की खराब कानून-व्यवस्था वाला माहौल बिल्कुल माकूल है। ऐसे में अगर खालिस्तान का जिन बोतल से बाहर आ जाए तो कुछ भी हो सकता है। उसके लिए भिंडरावाला के दौर को बार-बार याद करवाना सबसे आसान रास्ता है। क्या इसी लिए समूचा मीडिया आनन-फानन में अमृतपाल का नामकरण भिंडरवाला 2.0 के रूप में करने पर अमादा है? पर क्या अमृतपाल सचमुच भिंडरावाला बन सकता है?
जरनैल सिंह भिंडरावाला एक प्रमुख सिख संस्था के प्रमुख थे। जब कि अमृतपाल सिंह को किसी भी प्रमुख धार्मिक संगठन का समर्थन हासिल नहीं है। पंजाब में शांति पसंद बहुत बड़ा वर्ग, जिस में सिख भी शामिल हैं, बहुत से मामलों में अमृतपाल का विरोध कर रहा है। पंजाब को समझने वाले जानकार बताते हैं कि जिस तरह का माहौल इस समय पंजाब में बना हुआ है, वह भाजपा के लिए ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ है।
देखा जाए तो अमृतपाल सिंह जो भी कर रहे हैं, वह भाजपा की विचारधारा से ही मेल खाता है। जैसे दुबई से आते ही अमृतपाल सिंह ने पंजाब में ईसाई प्रचारकों के ख़िलाफ़ काफ़ी सख़्त रुख अपनाया। उनके समर्थकों ने गांवों में उनको ना घुसने देने के ऐलान किया। पंजाब के भाजपा नेताओं और प्रवक्ता ने अमृतपाल के इस कदम की सराहना की और सभी को इस मामले में साथ देने की अपील की।
इस से पहले धर्म-परिवर्तन पंजाब में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। इस के साथ ही सिखों के हिंदूओं, दलितों और मुसलमानों के साथ भी टकराव का माहौल पैदा किया गया। लेकिन सदियों से मिल-जुल कर रह रहे पंजाब के हिंदु, दलित, मुसलमान, ईसाई और सिख भड़के नहीं। बल्कि मिल-जुल कर उन्होंने एक साल तक सफ़ल किसान आंदोलन लड़ा।
इतनी खुली छूट?
सोचने वाली बात यह भी है कि जिस समय अमृतपाल सिंह दुबई से पंजाब आए, उसी समय एक सिख पत्रकार अंगद सिंह भारत आए, लेकिन मोदी सरकार ने उसे दिल्ली एयरपोर्ट से ही वापिस भेज दिया। इसी तरह यूके के एक खालिस्तानी समर्थक माने जाते युवा जग्गी जौहल को एयरपोर्ट पर ही हिरास्त में लेकर कई सालों से जेल में रखा गया है। लेकिन अमृतपाल सिंह बहुत आराम से भारत आते हैं और अपनी सामाजिक गतिविधियां चला रहे हैं, इस पर भारत की ख़ुफिया ऐंजसियां बिल्कुल मूक हैं। जब कि अमृतपाल दुबई में रहते हुए ही खालिस्तान के प्रति अपने विचार सोशल मीडिया पर व्यक्त करते रहते थे।
चिंतनशील हल्कों में यह बात लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है कि खालिस्तान संबंधी कुछ किताबें रखने पर भी जहां यूएपीए का मामला दर्ज हो जाता है, वहां पर अमृतपाल को इतनी छूट कैसे मिली हुई है। फ़िलहाल पंजाब में ड्रग्स के खिलाफ कैंपेन में अमृतपाल सिंह को ग्रामीण लोगों का काफ़ी समर्थन मिल रहा है। ख़ास कर उन परिवारों से जिन के बच्चे नशे की चपेट में आकर मौत के मुंह में चले गए, वह अमृतपाल सिंह के काम की प्रशंसा कर रहे हैं। उन में से बहुत सारे लोग उनके खालिस्तानी विचारों के समर्थक भी नहीं हैं।
साेशल मीडिया पर शिकंजा
इस से पहले पिछले साल जुलाई में अमृतपाल सिंह का ट्विटर खाता बंद कर दिया है। अजनाला घटना के बाद उनका ब्लू टिक वाला इंस्टाग्राम खाता भी बंद करने की ख़बरें आ रही हैं।
हथियार लेकर क्योंं चलते हैं?
अमृतपाल लगातार नशा तस्करों पर तल्ख़ टिप्पणियां कर रहे हैं। गावों में नशाबंदी पर ज़ोर दे रहे हैं। अमृतपाल का दावा है कि इस वजह से उन्हें नशा-तस्करों से जान का ख़तरा है। इस वजह से वह अपने साथ निजी लाइसेंसधारी हथियारबंद सुरक्षा घेरा लेकर चलते हैं। वह कहते हैं कि उनके साथ चलने वाले हथियारबंद लोग हिंसा के लिए नहीं बल्कि आत्म-रक्षा के लिए है।
सौ टके
हैरानी होती है कि जो मीडिया अदानी के हिंडनबर्ग मामले में लंबी चुप्पी साधे बैठा रहा, वही आज अमृतपाल सिंह और खालिस्तान पर ज़ोरदार शोर मचा रहा है। लेकिन फ़िलहाल पंजाब में पूरी तरह से शांति बनी हुई है और पंजाब के लोग अपने रोज़मर्रा के संघर्षों में जुटे हुए हैं। उनके पास अशांति फैलाने और देश को तोड़ने के लिए बिल्कुल समय नहीं है।
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