पंजाबी कहानी । नाविक का फेरा । अमृता प्रीतम
मर्द-औरत का रिश्ता, आदम और हव्वा के ज़माने से एक अबूझ पहेली रहा है। समाज, राजनीति, न्यास व्यवस्था, रोज़गार और अकांक्षाएं इस पहेली को और भी गहरा कर देते हैं। प्रख्यात लेखिका अमृता प्रीतम औरत-मर्द के रिश्ते और प्रेम की गहराईयों को बड़ी बेबाकी से शबदों में उतराने के लिए जानीं जाती हैं। उन्हीं की कलम से उपजी पंजाबी कहानी ‘मलाह दा फेरा’ के ज़रिए वह इस रिश्ते को यथार्थवादी पात्रों के ज़रिए एक फंतासी संसार में ले जाती हैं। कहानी के अंत तक आप यही समझते हैं कि यह हाड़-मांस के पात्र हैं, लेकिन अंतिम पंक्तियों तक आते-आते पता चलता है कि यह पात्र हमारी कल्पनाओं से उपजे हैं। क्या हैं वह कल्पनाएं, जानने के लिए पढ़िए कहानी का हिंदी अनुवाद-सागर किनारे भीड़ जमा थी। हर उम्र, मज़हब, वेषभूषा के लोग।कुछ समंदर के सीने को बड़ी ईप्सा से नज़र के आखरी छोर तक देख रहे थे। कुछ नज़रें भीड़ में इस तरह व्यस्त थी जैसे समंदर से कोई वास्...