दीप जगदीप सिंह
फ्रैंच राष्ट्रपति के भारत दौरे की पहली सूचना आने से लेकर ही फ्रांस में सिख समुदाय की पगड़ी पर पाबंदी का मुद्दा चर्चा में बना हुआ है। गणतंत्र दिवस के मौके पर फ्रांस के राष्ट्रपति की उपस्थित में सिख रेजीमेंट को शामिल ना करने से इस मुद्दे ने और तूल पकड़ लिया है। एक बार फिर यह मुद्दा फ्रैंच सरकार बनाम सिख समुदाय ना होकर केंद्र सरकार बनाम सिख समुदाय हो गया है।
इसी बीच भारत में स्थित फ्रैंच एम्बेसी ने इस मामले में अपने देश की छवि बचाने के लिए बयान जारी कर दिया, लेकिन इस बयान से स्थित स्पष्ट होने की बजाए और भी उलझ गई है। बताते चलें कि गणतंत्र दिवस के मौके पर फ्रांस के राष्ट्रपति की उपस्थित में सिख रेजीमेंट को परेड में शामिल ना करके केंद्र सरकार ने जाने अनजाने में फ्रांस में सिखों के पगड़ी पर पाबंदी के मसले के प्रति अपनी गंभीरता पर प्रशनचिन्ह लगवा लिया है। उसी दिन से दुनिया भर के सिखों में रोष की लहर फैल गई है और केंद्र सरकार सिख समुदाय के निशाने पर है।
एक बार फिर देश-विदेशों में मौजूद गर्मदलीय सिख संगठनों ने इसे केंद्र सरकार बनाम सिख समुदाय का मुद्दा बनाकर भुनाने की कोशिश शुरू कर दी। पहले से ही सिख समुदाय में यह भावना व्यापत है कि केंद्र सरकार हमेशा सिख समुदाय के साथ अपने ही देश में भेदभाव करती रही है। केंद्र की मोदी सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसने जानबूझ कर ऐसे मौके पर सिख रेजीमेंट को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल नहीं किया जबकि फ्रांस के राष्ट्रपति के सामने वह सिख समुदाय की भावनाओं से जुड़े सबसे प्रमुख मसले को उठाने में अह्म भूमिका निभा सकती थी। सिख बुद्धिजीवियों का आरोप है कि इससे एक बार फिर भाजपा का सिख विरोधी चेहरा नंगा हो गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि अल्पसंख्यकों को अपने ही देश में हिंदुत्ववादी सरकार के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है।
कुछ ऐसी ही भावना 80वें के दशक में पंजाब सहित देश दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रहते सिखों में फैल गई थी, जिसे कुछ अलगाववादी संगठनों ने भुनाया और सिख युवकों को हथियारबंद ‘आज़ादी’ के लिए प्रेरित किया। जिस वजह से लम्बे अर्से तक पंजाब को काले दौर से गुज़रना पड़ा। विदेशों में बैठे कुछ लोग आज भी ऐसे मुद्दों को भुनाने की ताक में हमेशा रहते हैं, जिससे केंद्र सरकार पर इस बात की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह अल्पसंख्यकों को देश के एकसमान नागरिक होने का अहसास दिलवाए और अंतराष्ट्रीय पटल पर उसकी भावनाओं से जुड़े मुद्दों को हल करने में ना सिर्फ उनका सहयोग करे बल्कि अपनी सक्रिया भूमिका निभाए। फिलहाल केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी कोई पहलकदमी नज़र नहीं आ रही है। अभी तक गणतंत्र दिवस की परेड में सिख रेजीमेंट को शामिल ना किए जाने का कारण तक सरकार ने नहीं बताया है, जिस वजह से लोगों को अटकलें लगाने का मौका मिल रहा है। केंद्र सरकार को तुरंत इस मुद्दे पर स्थित स्पष्ट करने के साथ ही यह बताना चाहिए कि वह फ्रांस में पगड़ी पर पाबंदी के मुद्दे पर क्या कर रही है।
सिख संगठन केंद्र सरकार पर तो निशाना साध रहे हैं लेकिन पंजाब सरकार इस मौके पर उनकी भावनाओं को भुनाने में जुटी हुई है। पीजीआई चंडीगढ़ में दाखिल होने के बावजूद मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने प्रधानमंत्री की पत्र लिख कर रोष तो जता दिया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सबसे पहले पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ पहुंचे फ्रैंच राष्ट्रपति का स्वागत करने अगर प्रधानमंत्री प्रॉटकॉल से बाहर जाकर दिल्ली से आ सकते हैं, हरियाणा के मुख्यमंत्री पहुंच सकते हैं, तो पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने आखिर क्यों फ्रैंच राष्ट्रपति से मिल कर यह मुद्दा उठाने की जहमत क्यों नहीं उठाई, जबकि एसजीपीसी पहले ही सीधे तौर पर फ्रैंच सरकार से इस मुद्दे पर पत्राचार कर रही है। पंजाब सरकार केंद्र सरकार पर सारा इल्ज़ाम डाल कर खुद को कैसे बरी कर सकती है।
जहां गणतंत्र दिवस परेड में सिख रेजिमेंट को शामिल ना किए जाने के मुद्दे पर सोशल मीडिया पर ज़ोरदार बहस चल रही है, इसी बीच फ्रांस एम्बेसी ने पगड़ी पर पाबंदी के मामले में अपनी स्थित स्पष्ट करते हुए कहा है कि सिखों को सर्वजनिक स्थानों पर पगड़ी पहनने पर कोई पाबंदी नहीं है। एम्बेसी द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि फ्रांस धार्मिक स्वतंत्रा के साथ-साथ किसी भी धर्म को ना मानने के अधिकार का भी सम्मान करता है और धार्मिक आधार पर भेदभाव के ख़िलाफ है। पगड़ी पहनने पर कोई पाबंदी नहीं है। फ्रैंच कानून इस बारे में बेहद स्पष्ट है: पाबंदी केवल पब्लिक स्कूलों में किसी भी नज़र आने वाले धार्मिक चिन्ह पर है और यह सभी धर्मों पर लागू है। बयान में यह भी कहा गया है कि यह पब्लिक स्कूलों के विवेक पर छोड़ा गया है कि वह इस पाबंदी को संवेदनशील तरीके से किस तरह लागू करते हैं। एम्बेसी ने दावा किया है कि इस बात की जानकारी भारतीय अधिकारियों और फ्रांस में मौजूद सिख प्रतिनिधियों को भी दी जा चुकी है, जिनके साथ लगातार संवाद बना हुआ है। बयान में यह भी कहा गया है कि फ्रांस का सिख समुदाय वहां के कानून को अच्छे से समझता है और उन्होंने सरकार के साथ मिल कर फ्रैंच गणराज्य और अपने धार्मिक रिति-रिवाजों के बीच एक संतुलित रस्ता अपनाया हुआ है।
वहीं फ्रांस में मौजूद सिख अधिकारों के लिए सक्रिय संस्था सिख वाईकी का दावा है कि धार्मिक चिन्हों संबंधी फ्रैंच कानून में प्रमुख मौलिक अधिकारों प्राप्त करने के लिए भी सिखों को अपनी पगड़ी उतारनी पड़ती है जो उनकी धार्मिक स्वतंत्रा के मौलिक अधिकार का हनन है। सिख वाईकी के अनुसार पासपोर्ट, ड्राईविंग लाईसेंस और किसी भी किस्म का सरकारी पहचान पत्र बनवाने के लिए पगड़ी के बिना तस्वीर लगाने का नियम उनकी धार्मिक स्वतंत्रा में बाधा बन रहा जबकि फ्रैंच संविधान उन्हें धार्मिक आज़ादी का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। इस तरह यह कानून अपने ही गणराज्य के संविधान के विरोध में खड़ा है। ऐसे ही एक मामले में फ्रांस निवासी 76 वर्षीय रणजीत सिंह को अपना इलाज करवाने के लिए लम्बी जंग लड़नी पड़ी। चूंकि सरकार पहचान पत्र ना होने की वजह से उन्हें सरकारी चिकित्सा सुविधाएं नहीं प्राप्त हो सकती थीं और दस्तावेज बनाने के लिए वह अपनी पगड़ी उतारने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। उन्होंने अपने एक साथी 55 वर्षीय शिंगारा सिंह के साथ मिल कर एक लंबी लड़ाई की शुरूआत की। फ्रैंच अदालतों में हार का सामने करने पर वह योरपीयन अदालत गए। वहां भी उन्हें पूरी राहत नहीं मिली तो उन्होंने यूनएन मानव अधिकार कमेटी के पास जाने का फैसला किया, जिसने 2012 में रणजीत सिंह के हक में फैसला सुनाया। लेकिन सिख समुदाय के लिए पगड़ी पर पाबंदी ज्यों की त्यों है। मंगलवार 2 फरवरी को फ्रैंच एम्बेसी द्वारा जो बयान जारी किया गया है वह सिर्फ सर्वजनिक स्थानों पर पगड़ी पहनने की स्थिती स्पष्ट करता है लेकिन पहचान पत्रों में पगड़ी वाली फोटो लगाने पर कुछ भी कहा नहीं गया है, जिससे फ्रांस में सिखों की पगड़ी पर पाबंदी का मसला और ज़्यादा उलझता हुआ नज़र आ रहा है।
2004 में फ्रांस सरकार ने कानून पास कर स्कूलों में धार्मिक चिन्ह पहन कर आने पर पाबंदी लगा थी जिसके बाद मुस्लिम समुदाय के लिए हिजाब और सिख समुदाय के लिए स्कूलों में पगड़ी पहन कर जाना प्रतिबंधित है। यही नहीं सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा के मद्देनज़र बुर्के पर भी पाबंदी है।
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