प्रकाश सिंह बादल – क्या खोया क्या पाया

हरजेश्वर पाल सिंह
Parkash Singh Badal, Died
प्रकाश सिंह बादल – क्या खोया क्या पाया | Parkash Singh Badal – A retrospect

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का 25 अप्रैल 2023 को 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जिसकी प्रशंसा भी होती है और आलोचना भी। गांव के सरपंच बनने से शुरूआत कर पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने वाले बादल एक ऐसे नेता थे जो पंजाब की राजनीति पर आधी सदी तक छाए रहे।

प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुक्तसर ज़िले में पड़ते एक अर्ध-सामंती, शुष्क दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र से आते थे। एक संपन्न जमींदार परिवार में पैदा हुए बादल ने, लाहौर से स्नातक की डिग्री हासिल की और अपने चाचा तेजा सिंह के मार्ग-दर्शन और अपने नज़दीकी रिश्तेदार पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री बलदेव सिंह और ज्ञानी करतार सिंह की मदद से वह राजनीति के मैदान में उतरे। सन 1957 में वह पहली बार विधायक, सन 1970 में पहली बार पंजाब के मुख्यमंत्री और सन 1977 में केंद्रीय मंत्री बने। अस्सी और नब्बे के दशक के शुरुआती सालों में कुछ अर्सा गुमनामी में रहने के बाद नब्बे के दशक के अंत में वह तेज़ी से उभरे और अगले पंद्रह साल तक सत्ता के शिखर का आनंद लेते रहे।

तीखी और मुकाबले से भरी सिख और पंजाब की राजनीति में अपने लचीले, उदार और व्यावहारिक अंदाज़ के साथ चलते हुए घिसटते, बचते, उभरते हुए बादल आख़िरकार सफ़ल होते चले गए। जीवन भर अकाली रहे बादल लहरों और समय के साथ तैरना जानते थे। उन्होंने 1950-60 में अपनी शुरूआत एक वफ़ादार पंथिक अकाली स्वयं-सेवक के तौर पर की और 1970 के दशक में किसानों और राज्यों के अधिकारों के रक्षक बने। 1980 के दशक में वह ‘राष्ट्रवादी सिख’ बने और 1990 के दशक में वह हिंदु-सिख एकता का प्रतीक बन कर उभरे। 21वीं सदी में उन्होंने मुफ़्त बिजली और आटा-दाल जैसे लोक-लुभावनी नीतियों की शुरूआत की।

Parkash Singh Badal, Atal Bihari Vajpayi
Parkash Singh Badal, Atal Bihari Vajpayi

उन का यही लचीलापन और अनेक ‘अवतार’ लगातार उन्हें राजनीति के केंद्र में बनाए रखने और मददगार भी साबित हुए और समय और स्थिति के मुताबिक दक्षिण या वाम की तरफ छलांग लगाने के लिए भी कारगर रहे। यहां तक कि 80वें दशक में जब समझदारी के तकाज़े के मद्देनज़र अकाली नेतृत्व की सबसे वाजिब पसंद बन कर उभरने के बावजूद बादल ने पीछे रह कर काम करने को प्राथमिकता दी। किसी ध्येय या विचाराधारा पर दृढ़ रहने जैसी बंदिश से मुक्त बादल की कोई भी समझौता करने के लिए तैयार रहना और राजनीतिक लचकता बनाए रखना बादल के विल्क्षण गुणों में शुमार रहे।

इन गुणों के साथ मिल कर उन के मित्त-भाषी स्वभाव ने उन्हें पारंपरिक केंद्रवादी मध्य मार्गी और उदारवादी राजनेता बनाए रखा। इस तरह उन्होंने अपने आप को कट्टर ‘’पंथिक’’ माने जाते मास्टर तारा सिंह, गुरचरन सिंह टौहड़ा और जगदेव सिंह तलवंडी के दबदबे वाली अकाली राजनीति का एक ऐसा सर्वसम्मत चेहरा बनाए रखा जो इन नेताओं की तुलना में भाजपा जैसे दलों के लिए गठजोड़ का स्वीकार्य चेहरा था।

बादल का एक गुण जिसे उनके दोस्त और दुश्मन दोनों पसंद करते रहे हैं, वह है उनका सख्त मेहनती, विनम्र और आम लोगों की सीधी पहुंच में होना। निस्संदेह बादल पंजाब के एक बहुत बड़े जनसमूह को आकर्षित करने वाले राजनेता थे। सोशल मीडिया और टीवी के उभार से पहले के दौर में ख़ास कर अकाली दल जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के लिए समर्थकों के साथ निजी संवाद और उनकी नेताओं तक आसान पहुंच बनाए रखना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था। इस मामले में प्रकाश सिंह बादल का कोई सानी नहीं। बादल ने हमेशा एक दुष्कर दिनचर्या अपनाए रखी। वह तड़के उठ जाते, खाने-पीने के संयम और कसरत के अनुशासन का पालन करते और देर रात तक लगातार गहनता से काम में डूबे रहते। उनके चंडीगढ़ या बादल गांव के निवास पर, जहां भी वह होते, चाहे सचिवालय में या सफ़र में, हर रोज़ हज़ारों लोग उन से तबादले, नौकरी, पैंशन आदि मांगों के साथ उन को घेरे नज़र आते। उन सब की हर मांग को यह अकाली नेता पूरी सहृदयता से पूरा करता, चाहे उसके लिए किसी को फ़ोन करना पड़े या सिफ़ारिश का पत्र लिख कर देना हो।

उन्होंने ‘संगत दर्शन’ के संकल्प को स्थापित किया जिस के तहत वह रोज़ाना पंजाब के किसी ना किसी हिस्से में पहुंच कर चौपाल में बैठ जाते और उनके पीछे-पीछे प्रशासन के अधिकारियों को आना होता। वहां बैठ कर वह लोगों की समस्याओं को सुनते, तुरंत हल करवाते और हाथों-हाथ ग्रांट के चेक बांटते। विरोधी इसे फंड की बंदरबांट करने वाला, मनमर्जी़ वाला सामंती व्यवहार बता कर उन पर तीखे हमले करते, लेकिन उनका यही व्यवहार उनके पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे समर्थकों और जन आधार के साथ उनका संबंध मज़बूत बनाए रखता। इस के साथ ही लोगों के साथ सीधे संवाद में बादल अपने कान खुले रखते जो उन्हें ज़मीनी हकीकत से जोड़े रखता। यह बहुत असंभव होता कि बादल के पास आया कोई फ़रियादी निराश या अपनी बात बिना सुनाए लौट जाता।

जब भी वह सत्ता से बाहर होते तो वह पूरी तत्परता से आम लोगों के शादी, दाह-संस्कार, भोग (शोक सभा), जगराते आदि में शामिल होने जाते। बादल अपनी एमबीए (मैरिज, भोग, अरदास) के सफ़ल संवाहक माने जाते। बादल इस बात का पूरा ख़्याल रखते के पंजाब के कोने-कोने में ऐसे अनगिनत समारोह में शामिल हो कर लोगों से संवाद कर, उन्हें सशक्त बना और मदद कर उनका सत्ता का आधार संगठित होता रहे। इस तरह के कार्यक्रमों में जाने और संगत दर्शन से वह पार्टी कार्यकर्ताओं से नज़दीकी संबंध बनाने, उनकी शिकायतें सुनने, तंग करने वालों को शांत करने, मतभेद रखने वालों को मनाने और विरोधियां का दिल जीतने में सफ़ल रहते। वह दोस्तों और विरोधियों सब के साथ बहुत मिलनसार रहते। उनके अंदर हर मिलने वाले को ख़ास महसूस करवाने की एक अद्भुत कला थी। उनके बारे में एक दंत कथा है कि बादल जिन के पास ख़ुद चल कर आ जाएं वह व्यक्ति बादल के ख़िलाफ़ जा ही नहीं सकता।

अरविंद केजरीवाल की चप्पल, खुली कमीज़ और देसी हिंदी वाली छवि के आने से बहुत पहले प्रकाश सिंह बादल अपने सिल्वटों वाले कुर्ते पयजामें, बेढब सी बंधी किसानी पगड़ी और आत्मीयता वाले स्वभाव के साथ पंजाब की राजनीति में असली आम आदमी का प्रतीक थे। सन 1997 तक बादल की छवि सब की पहुंच में रहने वाले और विशाल जन आधार वाले ईमानदार आम आदमी की छवि थी जो उनकी ख्याति को और भी चमकाने में कारगर साबित होती रही।

प्रकाश सिंह बादल की सफ़लता के सबसे बड़े कारणों में से एक उन का टीम को साथ लेकर चलना था। उनके पास अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के साथ सत्ता की ताकत बांटने की समझ थी। सत्ता तक पहुंच में सुखदेव सिंह ढींडसा, बलविंदर सिंह भूंदड़, रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, कैप्टन कंवलजीत सिंह आदि की बड़ी भूमिका थी, जिन्होंने बादल को पार्टी के अंदर टोहड़ा और बरनाला जैसे विरोधियों को पीछे छोड़ते हुए आगे निकलने में मदद की। लंबी गांव में उनके गढ़ की रक्षा के लिए सख़्त मिजाज़ दयाल सिंह कोलियांवाली मौजूद रहता जबकि हरचरन बैंस और दलजीत सिंह चीमा उनकी सत्ता के विद्वान और विवेकी चेहरे थे। राजनीति टेनिस नहीं फुटबॉल का खेल है बादल की इस समझ ने लम्बे समय तक सत्ता की बागडोर उनके हाथों में थमाए रखी। बीर दविंदर सिंह, जगमीत बराड़ और सुखपाल खैहरा जैसे पंजाब के नेताओं का इस बात को ना समझ पाना उनके लिए घातक साबित हुआ।

चुनाव लड़ने, टिकट हासिल करने, सहयोगी दलों का दिल जीतने, रैलियां करने और विरोधियों को शांत करने के लिए इन दिनों करोड़ों की ज़रूरत होती है इन सच्चाई को ध्यान में रखते हुए बादल उन शुरुआती नेताओं में से एक थे जिन्होंने ख़ुद को बचाए रखने और राजनीति में लंबी चलने वाली सफ़लता के संसाधन के तौर पर पैसे की ताकत के महत्व को समझ लिया था। प्रकाश सिंह बादल के परिवार को पंजाब के सबसे अमीर घरानों में से एक माना जाता है, जिन्होंने पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और हिमाचल में बहुत सारी खेतीबाड़ी वाली ज़मीन और शहरी संपत्ति बनाई है। उन की ऑरबिट और डब्बवाली ट्रांस्पोर्ट कंपनियों के पास प्रदेश की सबसे ज़्यादा संख्या वाला बसों का बेड़ा है। पंजाबी चैनल चलाने वाले पीटीसी नेटवर्क का पंजाब के ख़बर नेटवर्क पर हाल-फिलहाल तक एकाधिकार रहा है। गुड़गांव और चंडीगढ़ में उनके लग्ज़री होटल हैं। इस के अलावा सत्ता में रहते हुए बादल परिवार के केबल, शराब और रेत खनन में हिस्सेदारी होने की ज़ोरदार संभावनाएं जताई जाती रही हैं।

Parkash Singh Badal, Narendra Modi
Parkash Singh Badal, Narendra Modi

उनकी महत्वपूर्ण विरासतों में से एक ‘‘हिंदु-सिख’’ एकता में निभाई गई उनकी भूमिका है। आतंकवाद के दौर के बाद पंजाब में सांप्रदायिक तनाव को ख़त्म करने और सन 1997 में सत्ता में वापस लाने के लिए भाजपा के साथ गठजोड़ उन के लिए मददगार साबित हुआ। सन 1996 की मोगा घोषणा के बाद अकाली दल के ‘पंथक’ से ‘पंजाबी’ पार्टी में बदलने से पार्टी का जनाधार बढ़ने में बहुत सहायता मिली। आगे चल कर बादल ने ‘आटा-दाल’ और ‘स्मारकों’ के ज़रिए दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश की। इस कदम ने अकाली दल को सन 1997 से 2017 तक सत्ता में बने रहने में बहुत मदद की।

बादल की सत्ता के विभिन्न पड़ावों में अन्य उपलब्धियों के अलावा ग्रामीण विकास, सड़कों और फोक्ल प्वाईंटस का निमार्ण, आधारभूत ढांचे का विकास (हाईवे, सरप्लस बिजली),  बठिंडा रिफाईनरी, समाज भलाई के कार्य (आटा-दाल, पेंशन) और विरासत से जुड़ी इमारतों, विरासत-ए-ख़ालसा, चप्पड़चिड़ी आदि का निर्माण प्रमुख हैं।

प्रकाश सिंह बादल के जीवन को दो दृश्यों वाले नाटक के रूप में देखा जा सकता है। एक 1950वें दशक से सन 1994 तक और दूसरा सन 1994 से 2017 तक।

पहले पड़ाव में प्रकाश सिंह बादल एक जनसमूह के नेता थे, जो लोगों के लिए संघर्ष करते हुए कष्ट झेल रहा था, जेल काट रहा था और किसानों, सिखों और पंजाब का रखवाला था। इस पड़ाव में उसे स्थानीय शासकों के ख़िलाफ़ लड़ना और उग्र हमलों के दौरान अपने अस्तित्व को बचाए रखना था। इस पड़ाव में उसे थोड़े समय के लिए सत्ता हासिल होते हुए और गुमनामी में जीवन बिताते हुए देखा गया। इस पड़ाव में वह काफ़ी हद तक बेदाग़ रहे।

दूसरे पड़ाव में उन्हें राजनीति के चक्रवाती शिखर पर पहुंचते हुए देखा गया। अंततः वह अपने, उदारवादी और कट्टर, सभी विरोधियों को ख़त्म करने और हराने में सफ़ल हो कर 15 साल के लंबे अर्से के लिए सत्ता का सुख भोगते हैं और अपने परिवार को सत्ता की गोद में शरण देते हें। अब क्योंकि वह सत्ता के नशे, परिवार और राजनीति के ग़ुलाम हो चुके होते हैं तो बहुत सावधानी से जमा की गई उन की राजनीतिक पूंजी इस पड़ाव में ख़र्च हो जाती है। अकाली दल एक माफ़िया समूह में तबदील हो जाता है और बादल परिवार भ्रष्टाचार, परिवारवाद और अहंकार का प्रतीक बन जाता है।

लंबे अर्से तक सत्ता में रहने के बावजूद बादल की जो सबसे बड़ी असफ़लता थी वह थी प्रदेश के लिए दूर दृष्टि की कमी। उनकी राजनीति स्वकेंद्रित, संकीर्ण और संकुचित रही। बादल ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत बतौर सरपंच की लेकिन पांच बार प्रदेश के मुख्य-मंत्री रहने के बावजूद उनका राजनीति का अंदाज़ सरपंच वाला ही रहा। पंजाब के ग्रामीण इलाके में एक सरपंच या गांव का मुखिया एक प्रतिस्पर्धा वाले, अंदरूनी तौर पर बंटे हुए और कल्पना से भरे समाज का संचालन करता है। उसे अपने साम, दाम, दंड, भेद वाले तरकश में मौजूद सभी तीर चलाने पड़ते हैं।

सरपंच की राजनीति में अपनी निजी सत्ता को किसी भी कीमत पर बचाए रखना ही उस की मूल आवश्यकता होती है। करीबियों और चापलूसों पर निर्भरता और योग्यता की बजाए वफ़ादारी को ज़्यादा प्राथमिकता देना अपना कब्ज़ा बनाए रखने के लिए लाज़मी होता है। अपने विरोधियों को बांटना और ख़त्म करना ही उसका सबसे बड़ा लक्ष्य होता है। मतदाताओं से सीधे संपर्क में रह कर और मुफ़्त की रेवड़ियां बांट कर उनका समर्थन बनाए रखता है। गांव के संसाधनों पर निजी हितों के लिए नियंत्रण और कब्ज़ा करने से उसकी ताकत और भी बढ़ जाती है। पर्दे के पीछे लगातार चालें चलते रहना और गलत कामों के लिए समर्थकों का सहारा लेना विरोधियों को दबाए रखता है। दिखने में विवेकी, विनम्र, उदार और मिलनसार बने रहना समर्थकों और विरोधियों पर अपना जादू चलाए रखता है। ठोस फैसलों से बचना और समझौता करने के लिए हमेशा तैयार रहना मतभेदों और कड़वाहट को उफन के बाहर आने से रोके रखता है।

मज़बूत इरादे या दूर दृष्टि की बजाए एक संकीर्ण, अल्पकालिक, मौकापरस्त और संकुचित नज़रिया सरपंच के पारंपरिक लक्षण बने रहते हैं। बादल ने प्रदेश की सत्ता संभालते हुए यह सभी लक्षण दिखाए।

उनके अर्थशास्त्र में लोक लुभावनी योजनाओं का पुलिंदा था जैसे मुफ़्त बिजली, संगत दर्शन जैसी संस्थागत रिश्वत और बस, केबल, रेत माफ़िया आदि पैदा करके संसाधनों की खुली लूट ने लंबे समय में प्रदेश को कंगाल कर दिया। चुनाव के दिनों में मतदाताओं को बड़े स्तर पर दी जाने वाली रिश्वत और अपनी पुश्तैनी सीट लम्बी और बठिंडा पर पैसों के बारिश ने परिवार के गढ़ को तो मज़बूत बनाए रखा लेकिन दूसरे क्षेत्रों में असंतुष्टि पैदा होती चली गई।

प्रशासक के तौर पर प्रकाश सिंह बादल कभी भी ठोस (कठोर) फ़ैसले लेने के लिए नहीं जाने जाते रहे। वह मामलों को टालते रहने और ‘जत्थेदारों’ की सिफ़ारिश पर चहेतों, सिफ़ारशियों, संदिग्ध किरदारों और पैसों की थैलियां भेंट करने वालों को आगे करने के मामले में कुख्यात थे।

अपनी निजी ताकत की भूख के चलते उन्होंने एसजीपीसी, अकाली दल और अकाल तख़्त जैसी सिख संस्थाओं को तबाह करने की ओर ले गए और अपने वफ़ादार समर्थकों को उन में भर्ती कर दिया। धर्म प्रचार के मामलों में एसजीपीसी ने पूरा मैदान अलग-अलग किस्म के बाबाओं और डेरेदारों के हवाले कर दिया, अकाल तख़्त ‘गुरबचन सिंह’ जैसे निठल्लों के लिए पार्किंग की जगह बन कर रह गया।

एक बार सत्ता में मज़बूती से जम जाने के बाद बादल ने पुराने चर्चित चेहरों की जगह अपने परिवार और करीबियों और योग्य व्यक्तियों की बजाए अपने वफ़ादारों को विशेषाधिकार बांटने शुरू कर दिए जिस वजह से अकाली दल बादल, मजीठिया और कैरों ख़ानदानों की पारिवारिक जागीर बन कर रह गया। सुखबीर और मजीठिया ने आगे बढ़ते हुए इसे धन्ना सेठों, रेत, केबल, शराब और बस ऑपरेटरों के ‘कॉरपोरेट माफ़िया’ में तबदील कर दिया।

Parkash Singh Badal, Sukhbir Singh Badal (Son), Harsimrat Kaur Badal (Daugter-in-Law)
Parkash Singh Badal, Sukhbir Singh Badal (Son), Harsimrat Kaur Badal (Daugter-in-Law)

बादल की सत्ता की भूख और संकीर्ण पारिवारिक हितों की वजह से वह लगातार अकाली दल के बुनियादों असूलों से समझौता करते रहे और कभी गौरवशाली किसानी और क्षेत्रीय संगठन माने जाने वाले इस दल को हिंदुत्वी ताकतों की नौकरानी बना कर रख दिया। कभी गौरवशाली रहे इस संगठन ने डेरा विवाद, किसान मोर्चे और कश्मीर मामले में पूरी तरह से घुटने टेक कर इसके अंदर से खोखले हो जाने को रेखांकित कर दिया।

बादल अपने विशाल राजनीतिक और निजी साम्राज्य को ध्वस्त होते हुए देखने तक जीवित रहे, जिसे खड़ा करने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया था, उसे तबाह होता देखना अंत में उनके लिए काफ़ी दुखदायी रहा होगा।

Parkash Singh Badal, Sukhbir Singh Badal, Manpreet Singh Badal

प्रकाश सिंह बादल, प्रताप सिंह कैरों और कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत पंजाब की शीर्ष राजनीति पर सबसे लंबे समय तक राज करते रहे। जहां कैरों को उनकी दूर दृष्टि, विकास और संस्थानों के निर्माण के लिए, कैप्टन को उनके ठोस इरादों और प्रशासनिक कुशलता के लिए जाना जाएगा, वहीं जनसमूहों से कैसे जुड़ा जाए और विभिन्नता भरे प्रदेश को संयम से कैसे चलाया जाए बादल हमें इसका कारगर खाका देकर गए हैं।

अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद: दीप जगदीप सिंह

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