बवालः क्या है इंस्टीच्यूट ऑफ एमिनेंस?

 
देश के शिक्षण संस्थानों को दुनिया के टॉप 100 की सूची में लाने के लिए केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय ने एक योजना बनाई है, जिसके तहत देश के 20 शिक्षण संस्थानों को इंस्टीच्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा दिया जा रहा है। इसके लिए यूजीसी द्वारा बनाई गई एम्पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी (ईईसी) ने सभी उच्च शिक्षण संस्थानों से आवेदन मांगे गए थे।
 
उत्कर्षट संस्थान का दर्जा पाने के लिए देश के कुल 114 संस्थान दौड़ में शामिल हुए, जिन में 11 सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़, 27 राष्ट्रीय महत्व के उच्च शिक्षण संस्थान, आईआईटीज़ एवं एनआईआईटीज़ आदि, 27 राज्य यूनिवसिर्टीज़ और 10 प्राईवेट यूनिवसिर्टीज़ शामिल हुईं। ऐयरटेल की भारती यूनिवर्सिटी (सत्या भारती फाउंडेशन), दिल्ली, अनिल अग्रवाल की वेदांता यूनिवर्सिटी, ओडिशा, करिया यूनिवर्सिटी, इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस हैदराबाद, इंडस टेक यूनिवर्सिटी दिल्ली, अचार्य इंस्टीच्यूट ऑफ बंगलौर प्राईवेट इंस्टीच्यूट्स में शामिल थे।

मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा टवीटर पर जारी किए गए दस्तावेज़ों के मुताबिक कैटेगरी 1 में उन संस्थानों को रखा गया जो पहले से मौजूद हैं जबकि एक ग्रीन कैटेगरी बनाई गई जिसमें उन संस्थाओं को रखा गया जिन के पास एक विश्व स्तर का शिक्षण संस्थान स्थापित करने की योजना और दृष्टि है। इस में कुल 11 आवदेन आए।

क्या निकला नतीजा?

कुल 114 आवेदनों में से 10 निजी और 10 सरकारी शिक्षण संस्थानों का चुनाव कर ‘इंस्टीच्यूट ऑफ एमिनेंस’ का प्रमाण पत्र दिया जाना था, लेकिन पूर्व चुनाव कमिश्नर एन. गोपालास्वामी की अगुवाई में बनी ईईसी ने सिर्फ़ तीन सरकारी और तीन निजी कुल 6 संस्थानों को चुना।

कौन से हैं यह 6 संस्थान?

सरकारी

  • आईआईटी दिल्ली, 
  • आईआईटी मुंबई, 
  • इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साईंस, बेंगलूरू

प्राईवेट:

  • बिट्स पिलानी, 
  • मनीपाल यूनिवसिर्टी, 
  • जियो इंस्टीच्यूट, रिलायंस फ़ाउंडेशन इंस्टीच्यूट एंड रिसर्च, महाराष्ट्र

 

‘इंस्टीच्यूट ऑफ एमिनेंस’ को क्या फ़ायदा मिलेगा?

  • अकादमिक एवं प्रशासनिक स्वायत्तता, जिस के तहत वह बिना यूजीसी या अन्य सरकारी नीति संस्थानों की दख़लअंदाज़ी के अपनी मर्ज़ी से कोर्स बना सकेंगे, फ़ीस तय कर सकेंगे और संस्थान का प्रबंधन चला सकेंगे।
  • विदेशी स्टूडेंट्स को दाख़िला
  • सरकारी संस्थानों को अगले पांच साल में मिलेगा 1000 करोड़ रुपए। निजी संस्थानों को यह फंड नहीं मिलेगा।
  • विदेशी टीचर्ज़ को रखने 
  • दुनिया के टॉप इंस्टीच्यूट में बराबरी करने का मौका और सरकारी ठप्पा
  • विदेशी शिक्षण संस्थानों से समझौता करने

क्या होगा इनका लक्ष्य?

अगले 10 सालों में दुनिया के टॉप 500 शिक्षण संस्थानों में और भविष्य में टॉप 100 में आना
 

जियो के नाम पर क्यों मचा बवाल?

10 जुलाई 2018 की शाम को जियो इंस्टीच्यूट को इंस्टीच्यूट ऑफ़ एमिनेंस देने की घोषणा हुई तभी से सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक और शैक्षिण गलियारों में हाहाकार मच गया। जब खोजने की कोशिश की गई तो पाया गया कि अभी तक जियो इंस्टीच्यूट का कोई नामो-निशान तक नहीं है, तो बड़े-बड़े शिक्षाविदों ने सवाल उठाया कि जो संस्थान दशकों से चल रहे हैं उन्हें सूची से बाहर रखा गया है, जबकि जिस संस्थान का अभी अपना कोई ठिकाना नहीं, अता-पता नहीं, यहां तक कि वेबसाईट भी नहीं, उस संस्थान को यह रुतबा किस आधार पर दिया गया।

राजनीतिक पंडितों ने तो यहां तक कहा कि पिछले चुनाव में मिले पार्टी फंड के बदले ऋण उतार रहे हैं और 2019 के चुनाव के लिए फंड का इंतज़ाम भी कर रहे हैं।

 

सरकार का क्या कहना है?

जावड़ेकर द्वारा जारी किए गए दस्तावेजों और टविट में उन्होंने कहा कि ग्रीन कैटेगरी में 11 एप्लीकेशन प्राप्त हुए, जिन का मूल्यांकन ज़मीन की उपलब्धता, बेहद उच्च योग्यता की कोर टीम और विस्तृत अनुभव, निवेश के लिए पूंजी, सलाना लक्ष्य के साथ रणनीतिक योजना और कार्य योजना इन चार मापदंडों पर किया गया, जिस में केवल जियो इंस्टीच्यूट को ख़रा पाया गया। साथ ही उन्होंने कहा कि अभी जियो इंस्टीच्यूट को कच्चा (प्रोवीज़नल) प्रमाण पत्र दिया गया है अगर रिलासंय अगले तीन सालों में संस्थान स्थापित कर लेगा तो दोबारा मूल्यांकण के बाद उसे पक्का प्रमाण पत्र दिया जाएगा।
 
 
रियालंस के चुने जाने के बारे में कहा गया है कि वह 60 करोड़ रुपए के शुरूआती निवेश के साथ अगले दस साल के लिए हर साल 150 करोड़ रूपए ख़र्च करेगा। इसके अलावा 500 करोड़ रूपए का अतिरिक्त फ़ंड इस काम के लिए सुरक्षित रखेगा। साथ ही रिलायंस फ़ाउंडेशन ने 1000 करोड़ रुपए और जुटाने की पक्की योजना का ख़ाका भी पेश किया है। इस तरह जियो इंस्टीच्यूट को बनने से पहले इंस्टीच्यूट ऑफ एक्सीलेंस का ठप्पा देने के लिए चुन लिया गया है।

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-ज़ाेरदार फ़ीचर डेस्क
 
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