Film Review by Gabbar and Sambha | Channo Kamali Yaar Di (Punjabi)

फिल्म समीक्षा: ए चन्नो तां कमाल दी निकली

दीप जगदीप सि‍ंह

गब्बर सिंह ने पंजाबी फिल्म चन्नो का ट्रेलर देखते ही चन्नो को सांभा की गनप्वाईंट पर रख कर पूछा, “अरे ओ चन्नो, क्या सोच के फिल्म बनाई तूने कि तू फिल्म में प्रेगनेट हो के कैनेडा की सड़कों पर घूमेगी, लोग देखने आएंगे, ताली बजाएंगे, आसूं बहाएंगे। बहुत नाइंसाफी है।”
पीछे से सांभा भी दीवार के अमिताभ बच्चन के अंदाज़ में बोला, “मेरी फिल्मों में बड़े सितारे हैं, ग्लैमर है, प्रमोशन है, तेरे पास क्या है, चन्नो?” उस वक्त चन्नो शशि कपूर की तरह बस यही कह सकी, “मेरे पास कहानी है।”

 

चन्नों की बातों में आकर गब्बर को बिना बताए सांभा लुधियाना के मल्टीप्लैक्स में चन्नो कमली यार दी देख कर जब वापिस अड्डे पर पहुंचा तो धर लिया गब्बर सिंह सरदार ने, पेश है आखों देखा हाल-

“अरे ओ सांभा, चल बता चन्नो ने कितने मिथ तोड़े हैं रे!”
“पांच सरदार!”
“हीरोईन नीरू बाजवा एक और मिथ तोड़े पांच, बहुत नाइंसाफी है।”
“नहीं सरदार, उसके साथ डायरेक्टर पंकज बतरा और फिल्म का लेखक नरेश कथूरिया भी तो है ना सरदार। और हां वो एक्टर है ना, बिन्नू ढिल्लो, वो भी तो लीड में था ना। क्या गजब रूलाया उसने उस्ताद। हम दि‍ल दे चुके सनम के अजय देवगन की याद दि‍ला दी सरदार…”
“क्या बात कर रहा है सांभा, वो तो हर फिल्म में हंसाता है, इस बार रूलाया, बहुत नाइंसाफी है।”
“सरदार, इस बार उसने स्टेंड अप काॅमेडी नहीं एक्टिंग की है सरदार, एक्टिंग !”
“अच्छा! फिर तो उसको सज़ा मिलेगी, बराबर मिलेगी”

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“वो क्या सरदार?”
“अब उसको सिर्फ वही रोल मिलेंगे जिसमें एक्टिंग करनी पड़े। अच्छा ये तो बता कौन-कौन से मिथ तोड़े हैं चन्नो ने?”
“सरदार, सबसे बड़ा मिथ के पंजाबी में स्टैंडअप काॅमेडी के बिना फिल्म नहीं बन सकती। दूसरा कामेडी कलाकार सिर्फ काॅमेडी ही कर सकता है। तीसरा हीरोईन सिर्फ ग्लैमर के लिए होती है। चैथा हीरोईन फिल्म की हीरो नहीं हो सकती। पांचवां काॅमेडी लेखक संजीदा फिल्म नहीं लिख सकता।”

“गल्त जवाब सांभा, एक और मिथ तोड़ा है?”
“वो क्या सरदार?”
“पहली बार गब्बर सिंह के टोले से कोई बिना बताए फिल्म देख के आया है सांभा, अब अपनी जान से प्यार है तो चल सांभा जल्दी से बता दे चन्नो की स्टोरी क्या है, क्या है स्टोरी ?”
“बताता हूं सरदार, बताता हूं, ये जो अपने गांव वाला ताजी (बीनू ढिल्लो) है ना वो शुरू से ही एक लड़की को प्यार करता था, जिसका नाम है चन्नो (नीरू बाजवा)। लेकिन बेचारा उसे कभी बता ही नहीं पाया और चन्नो की हो गई शादी कैनेडा के लड़के जीत (जस्सी गिल) से। कुछ दिन जीत चन्नों के साथ उसके गांव रहा और फिर कैनेडा चला गया। एक महीना तो उसने चन्नो से फोन पर बात की, फिर अचानक गायब। इधर चन्नो प्रैगनेट हो गई सरदार, उसके बच्चे की मां बनने वाली है। एक दिन वह गुरूद्वारे में अरदास करने गई और वहीं पर उसे मिल गया बचपन का दोस्त, ताजी। चन्नों ने उससे कहा कि वह कैनेडा अपने जीत को ढूंढने जाना चाहती है तो चन्नों के प्यार में ग्रिफ़तार ताजी मान गया उसके साथ कैनेडा जाने के लिए। फिर क्या था बेचारी प्रैगनेट चन्नो रूंआसा चेहरा और ताजी टूटा सा दिल लेकर पहुंच गए जीत को ढूंढने कैनेडा। पता है सरदार डायरेक्टर पंकज बतरा ने बड़ा ज़ब्रदस्त ससपैंस रखा है स्टोरी में।”


“अरे ओ सांभा, आज तक कोई ऐसा संस्पैंस नहीं बना जिसे गब्बर सिंह प्रडिक्ट नहीं कर पाया। ज़रा यह तो बता कि सबसे जोरदार एक्टिंग किसकी है रे।”
“सरदार सच बोल के मारा तो नहीं जायूंगा?”
“वो तो गोली चलने के बाद ही पता चलेगा सांभा, अभी फटाफट ज़बान चला।”
“सच बोलूं सरदार तो मैं सोच रहा था कि काॅमेडी छोड़ के बीनू ढिल्लों ने इमोशनल रोल काहे किया। चलो मान लो कर भी लिया तो इतनी इमोशनल एक्टिंग कैसे कर ली। सरदार, मां कसम कुछ सीन में तों पट्ठे ने रूला डाला। सरदार ये जो डायरेक्टर है ना पंकज बतरा पंगा तो इसने गलत ले लिया। एक नाॅन-चाॅकलेटी, देसी दिखने वाले बंदे को रोमेंटिक हीरो बना के, लेकिन यह बीनूं ढिल्लों तो टांकेबाज निकला सरदार, उसने तो दिखा दिया कि डायरेक्टर उसको टांका भिड़ाने का मौका दे तो वो बसंती को भी पटा ले। वो बात अलग है कि चन्नो पहले से किसी और से पटी हुई थी, सरदार।”
“और वो छमिया? चन्नो!”

“सरदार पहली बार नीरू बाजवा एक दम ख़ालिस पंजाबण लगी है। बिल्कुल गांव की लड़की, पंजाबी सूट, चाल-ढाल, डायलाॅग भी ठीक बोलने लगी है छमिया और कहते हैं कि फिल्म की शूटिंग के वक्त वह सचमुच आठ महीने की प्रेगनेंट थी, तभी मैं कहूं कि नीरू इस रोल में इतनी जम क्यों रही है। वैसे सरदार अब उसके चेहरे, उसकी पलकों पर उसकी उम्र नज़र आने लगी है, लेकिन यह रोल उसकी उम्र के हिसाब से एक दम फिट दा सरदार। ताजी की मां के रोल में अनिता देवगन, उसके दोस्तों के रोल में राणा रणबीर और करमजीत अनमोल भी बिलकुल जमे हैं उस्ताद। जस्सी गिल को अभी काफी मेहतन करनी पड़ेगी सरदार वैसे, छोरा दिखता बहुत ख़ूबसूरत है, अगर एक्सप्रैशन और डायलाॅग डिलीवरी पर मेहनत करले तो काफी आगे जा सकता है पट्ठा।”

“ओ सांभा इससे पहले कि मेरी बंदूक की गोली तेरी कनपटी की डायरेक्शन ढूंढ ले, डायरेक्टर की पोल-पट्टी खोल दे।”

“बताता हूं सरदार, पंकज बतरा ने फिल्म की कहानी को एक दम संभाल के रखा है, शुरूआत बिल्कुल सटीक है सीधे कहानी के मेन मुद्दे पर आ जाती है लेकिन पहले हाफ में आगे जाकर जीत को ढूंढने का सिक्वेंस कुछ ज़्यादा ही लम्बा है, फिल्म धीमी ओर बोर होने लगती है। इंटरवल पर कहानी क्राईसिस का शिखर छू लेती है और सैकेंड हाफ में धीरे-धीरे पर्तें खुलती हैं तो दिलचस्पी बनी रहती है लेकिन विलेन के घर में जीत को ढूंढने का सीकवेंस भी कुछ ज़्यादा खींचा गया है। इसके बाद क्या होने वाला है आप जैसा तेज़ दिमाग वाला सरदार आसानी से प्रडिक्ट कर सकता है, लेकिन दर्शक के लिए ससपेंस बना रहता है। क्लाईमेक्स के एक्शन में काफी जल्दबाज़ी है और कहानी एक झटके से खत्म हो जाती है। दर्शक एक आखरी दृश्य की अधूरी उम्मीद लिए एग्जि़ट की ओर बढ़ जाता है।”

“अरे ओ सांभा फिल्म की इतनी तारीफ करेगा तो एक दो नहीं पूरी छह गोली खानी पड़ेगी, कुछ तो झोल किया होगा, नासपिटे डायरेकटर आरै राइटर ने।”
“सरदार मैं नहीं बताऊंगा तो आप गोली मारोगे, बताऊंगा तो पंकज बतरा और नरेश कथूरीयां मार डालेंगे, ये तो आगे कुंआ पीछे खाई वाली बात हो गई।”


“तेरी जान बख़्श दूंगा, अगर तू यह बता दे कि चन्नों के मां-बाप कहां थे? क्या वो गांव में अकेली रहती थी? ताजी के साथ विदेश जाने का फैसला उसने अपनी मजऱ्ी से कर लिया। उसे किसी ने रोका, टोका, पूछा भी नहीं? अपने पंजाब की लड़कियां क्या ऐसे ही मुंह उठा के किसी के भी साथ कैनेडा चली जाती हैं क्या? वो भी तब जब वो प्रेगनैंट हो? यह भी बता कि रातों रात ताजी की ज़मीन कैसे बिक गई और पंजाब में ऐसा कौन सा ऐजंट है जो इतनी ज़ल्दी कैनेडा का वीज़ा दिलवा देता है? यह बताएगा कि धोखा देने पर जूनीयर विलेन एक गुर्गे को खुद ही पीट रहा है, लेकिन ताजी के धोखा देने पर वह उसे तुरंत सीनियर विलेन जैक के पास क्यों भेज देता है? बताएगा कि ज़मीन पर उल्टा लेटे हुए भी ताजी के गले में पहना स्पाई-कैमरा पूरे यार्ड के सीन कैसे पुलिस को दिखा रहा था? सबसे बड़ा सवाल कि करमजीत अनमोल का किरदार इतना बेवकूफ है कि हर वक्त उनके साथ रहने के बावजूद पूरे फर्स्‍ट हाफ में समझ नहीं आता कि चन्नों अपने असली पति को ढूंढ रही है और ताजी उसका पति नहीं है? एक ओर बड़ा सवाल कि विलेन का जो साथी चन्नो और ताजी को जीत की तलाशा में मोटेल ले जाता है, दोनों से मिल चुके होने के बावजूद उसके साथी बीनू और करमजीत को पहचान क्यों नहीं पाते? यहां तक कि उनके शूटर ने भी दोनों को देखा होता है फिर भी वह उनके साथ कभी कुत्ते वाला खेल खेलते हैं तो कभी हाकी वाला लेकिन पहचान नहीं पाते, इतने भोले विलेन, कहां से पकड़ के ले आए डायरेक्टर ठाकुर!”
“बता सांभा बता, या गोली खाने के लिए तैयार हो जा!”

लेकिन इससे पहले सांभा बेहोश होकर गिर पड़ा।
“अबे सांभा बेहोश होने से पहले रेटिंग तो दे जाता बे! (सांभा को हिलाते हुए) अफ! यह तो लगता गया काम से, अब रेटिंग भी मुझे ही देनी होगी। तो सुन लो, ढिश्क्यूं, ढिश्क्यूं, ढिश्क्यूं, और ढिचकूं यानि साढ़े तीन गोली की रेटिंग”

पीछे से कालिया ने घबराते हुए पूछा, “पर सरदार आपको फिल्म की सब खामियों के बारे में कैसे पता?”
“सूअर के बच्चो, मैं सांभा के पीछे वाली सीट पर बैठ के फिल्म देख रहा था। तुम लोगों ने कैसे सोच लि‍या कि‍ सांभा फि‍ल्‍म देखने जाएगा और सरदार नहीं जाएगा। हा…हा…हा…हा

“वाह सरदार, ए चन्नो तां कमाल दी निकली!”
ढिश्क्यूं! कालिया ढेर!

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