पिछले 15 सालों से लगातार 100 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है डायब्टीज़
डायब्टीज़ वालों को दिल के दौरे का दुगना ख़तरा
इंटरनैशनल डायब्टीज़ फैडरेशन के मुताबिक, भारत 65.1 मिलीयन डायब्टीज़ के मरीज़ों का घर है और यह आंकड़ा अगले दो दशकों में 100 मिलीयन तक पहुंचने वाला है।
जीवनशैली और आबादी में बदलाव, जैनेटिक कारण, अनुचित आहार और आलसी जीवनशैली आदि इस के प्रमुख कारण हैं। वैसे तो डायब्टीज़ के लक्ष्ण प्रत्यक्ष नहीं होते और इसका पता नहीं चलता लेकिन हमारी सेहत और शरीर पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। डायब्टीज़, दिल के रोगों और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का सीधा खतरा है। यहां तक कि तीन में से दो डायब्टीज़ पीड़ित इन दोनों से किसी रोग से ही मरते हैं। फिर भी देश में 50 प्रतिशत डायब्टीज़ के मामलों की जांच ही नहीं होती और इनका इलाज बहुत देर से हो पाता है। इस बार ‘बीट डायब्टीज़’ की थीम के साथ मनाए जा रहे वर्ल्ड हैल्थ डे के मौके पर डायब्टीज़ की वक्त रहते जांच और इलाज के बारे में जागरूकता फैलाना बेहद ज़रूरी है। शुरूआत में ही जीवनशैली में बदलाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
इस बारे में जानकारी देते हुए फोर्टिस एस्कोर्ट हाॅस्पिटल, फरीदाबाद के कार्डियाॅलाॅजी विभाग के एचओडी एंड प्रिंसिपल कंसल्टैंट, डाॅ संजय कुमार बताते हैं कि डायब्टीज़ दिल के रोगों के लिए एक प्रमुख खतरा है। यहां तक कि जिन लोगों को डायब्टीज़ नहीं है लेकिन हार्ट अटैक हो चुका है डायब्टीज़ वाले मरीज़ों को दिल का दौरा पड़ने का उतना ही खतरा रहता है। इनसूलिन की प्रतिरोधक्ता की वजह से रक्त में बहुत ज़्यादा शूगर होने से काॅर्नरी एथरोस्लिेरोसिस हो सकता है। जब दिल को रक्त और आॅक्सीजन पहुंचाने वाली रक्त धमनियों में प्लाॅक जमा हो जाता है तो उसे काॅर्नरी एथरोस्लिेरोसिस कहा जाता है, अगर इसका समय रहते इलाज न करवाया जाए तो हार्ट अटैक या आक्समिक कार्डियक अरैस्ट हो सकता है। पिछले एक दशक में छोटी उम्र में दिल के रोग और टाइप 2 डायब्टीज़ चिंता का प्रमुख कारण बने हैं। 20 साल की उम्र के लोगों में भी यह समस्याएं पाई जा रही हैं। इनके दूरगामी प्रभावों को देखते हुए इनसे बचने और इलाज के बारे में जागरूकता फैलानी होगी।
इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए एस्कार्ट हार्ट इंस्टीच्यूट एंड रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली के डायरेक्टर व इंटरवेनशनल काॅडियोलाॅजिस्ट डाॅ प्रवीर अग्रवाल बताते हैं कि टाइप 2 डायब्टीज़ से पीडि़त लोगों में दिल के रोग मौत का प्रमुख कारण बन रहे हैं। दिल के रोगों और डायब्टीज़ का सीधा नाता है, जिसका आधार मोटापा है। कमर के गिर्द चर्बी जमा होना भारतीयों में आम बात है जिस वजह से ग्लूकोज़ के नियंत्रण में गड़बड़ी हो जाती है और एथरोस्लिेरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे मामलों की जटिलताओं को देखते हुए इंटवेनशनल कार्डियोलोजिस्ट के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि बायपास सर्जरी की जाए या काॅर्नरी स्टेंटिंग। वैसे दवा से लगने वाले स्टेंट की तकनीक आ जाने से यह खतरा कम हो गया है, लेकिन गंभीर मामलों में एंजियोप्लास्टी से धमनी खोलने की बजाए बायपास सर्जरी को प्राथमिकता दी जाती है।
दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीच्यूट के कंसल्टैंट कार्डियाॅलाॅजिस्ट डाॅ. सुब्ररता लहरी ने बताया कि एंजियोग्राफी के अनुसार डायब्टीज़ और गैर-डायब्टीज़ वाले लोगों में लैफ्ट वर्टीकुलर कार्यप्रणाली एक जैसी ही होती है। लेकिन डायब्टीज़ वालों में डिफ्यूज़ काॅरनरी धमनी और ट्रिपल-वैसल रोग ज़्यादा होते हैं। ऐसे लोगों में मायोकार्डियल इनफारक्शन और हस्पताल में मौत होने का खतरा ज़्यादा होता है। डायब्टीज़ के इलाज के लिए जीवनशैली में बदलाव बेहद ज़रूरी हैं। धुम्रपान छोड़ना, फैट और शराब का सेवन कम करना, तेज़ सैर, जाॅगिंग, योग और एयरोबिक्स करना काफी मददगार साबित हो सकता है। तनाव मुक्त होने की प्रक्रियाएं भी इसमें काफी मदद कर सकती हैं।
विटामिन डी के स्तर को संतुलित करके, व्यायाम और वज़न पर काबू करके, दिल के दौरे का खतरा 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। विटामिन भरपूर खाना और धूप में बैठने से डायब्टीज़ और दिल के रोगों को दूर रखने में काफी बड़ी मदद मिलती है।
Leave a Reply