दीप जगदीप सिंह
मोहित सूरी की ‘हमारी अधूरी कहानी’ एक बार फिर उसी स्टीरियोटाइप को स्थापित करने की कोशिश करती है कि हमारे देश में प्रेम और प्रेमी परंपराओं के बंधनों में बंधे हुए हैं और उन्हें प्रेम को हासिल करने के लिए मौत को गले लगाना ही होगा। यही नहीं उनकी आत्माएं तभी मिलती हैं जब दोनों प्रेमियों के अवशेष एक ही जगह पर मिलते हैं। इक्कसवीं सदी में प्रेम चाहे टवीटर और वट्स एप में सिमट गया है। प्रेमियों और प्रेम के मिलन के लिए साधन और संभावनाएं बढ़ गई हैं। प्रेमी को प्रेमिका की एक झलक पाने के लिए अब कई दिन इंतज़ार नहीं करना पड़ता, जब दिल किया तभी तुरंत ताज़ा तस्वीर और लाइव वीडियो शेयर हो जाती है। मोहित सूरी के प्रेमी भी इसी तरह प्रेम करते हैं, लेकिन उनका मिलन कई दशकों पुराने अंदाज़ में अस्थि विसर्जन के बाद ही होता है।
Film Review | Hamari Adhuri Kahani | Emran Hashmi, Vidya Balan |
Film Review | Hamari Adhuri Kahani | Emran Hashmi Vidya Balan |
मोहित सूरी की इस प्रेम कहानी में जो नारीवाद की झलक है, वह प्रेम कहानी में एक नया टविस्ट कही जा सकती है। पुरानी कहानियों में प्रेमिका अपने पिता, भाई या पति को नारी पर लदी भारी भरकम परंपराओं का बखान नहीं करती थी,सूरी की प्रेम कहानी में प्रेमिका ही नहीं बल्कि उसकी मां भी नायिका को अपने खो चुके पति के मंगलसुत्र की कैद से निकल कर नई प्रेम कहानी बुनने की सलाह देती है। खोया हुआ परंपरागत पति जब लौट कर उसे वापिस हासिल करने की जब्रदस्ती कोशिश करता है तो वह उसे आज़ाद हो चुकी नारी के आक्रोश से रूबरू करवाती है। पति की बौखालहट में मोहित सूरी मर्द प्रधान समाज की बौखलाट को दिखाता है। इस बौखलाहट की अति को राव बखूबी पर्दे पर उतारता है। इस कशमकश में पिसती, बंटती और फिर आज़ाद होती विद्या बालन नए दौर की नारी का प्रतीक बन कर उभरती है। मोहित सूरी की फिल्म में बस यही एक खूबसूरती है कि उन्होंने घिसी पिटी कहानी को तेज़ी और खूबसूरती से पेश करने की भरपूर कोशिश की है और काफी हद तक सफल हुए हैं। बहुत हद तक हर हिंदी फिल्म की तरह हमारी अधूरी कहानी भी पूरी तरह से प्रिडिक्टेबल है। अगर दर्शक को कुछ बांधे रखता है तो वह विद्या, इमरान हाशमी और राजकुमार राव के एक्सप्रैशन्स और भावनाओं का आदान-प्रदान हैं। फिल्म को रफ्तार देने के लिए डायरेक्टर ने इमरान को पूरी कहानी में लगातार सफर करते हुए दिखाया है। इससे सिनेमेटोग्राफर विष्णू राव को खूबसूरत लोकेशन्स एक्सपलोर करने का काफी मौका मिला है, जिसे उन्होंने बखूबी भुनाया है। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई कि इमरान हाशमी कलकत्ता, दुबई,मुंबई, शिमला जहां भी जाते है, हर जगह एयरपोर्ट, एयरपोर्ट स्टाफ और एयरपोर्ट पर लगे हुए फूल एक जैसे ही क्यों होते है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कहीं भी जाने के लिए पहले अपने पसंदीदा एयरपोर्ट वाले शहर आते है? सैंकड़ों होटलों का मालिक कुछ भी कर सकता है, भाई। यह भी समझना मुश्किल था कि लेंड माईन लगाने के बावजूद फूलों का पूरा खेत कैसे खिला रहा या इतने घने फूलों के खेत को बिना खोदे लैंडमाइन बिछाए कैसे गए? लैंडमाईन बिछे हुए इलाके के पास चेतावनी भी लिख कर लगाई जाती है, यह भी मैंने पहली बार जाना। फिर भला इन लैंड माईन में जाएगा कौन? कोई पागल प्रेमी ही जाएगा, हैं जी।
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