
हर साल 14 फरवरी दुनिया में प्रेम दिवस के रूप में मनाई जाती है। पंजाबी साहित्य से जुड़े लेखक-पाठक उस दिन प्रेम से अपने प्यारे लेखक को याद करने के लिए मिल बैठने के दिन के रूप में मनाते हैं। इस 14 फरवरी को पूरे 50 दिनों के बाद मैं घर से बाहर निकला।
पंजाब के मालवा क्षेत्र की बोली मलवई को अपनी कथा साहित्य के ज़रिए मुख्यधारा में लाने वाले राम सरूप अणखी पंद्रह साल पहले इसी दिन पंचतत्व में विलीन हो गए। उन के प्रेम करने वाले उन्हें बाबा अणखी कह कर बुलाते हैं। बाबा अणखी के मोह के निमंत्रण ने सभी रास्ते उनके शहर बरनाले की ओर मोड़ दिए। बाबा अणखी ने दुनियादारी के झमेलों में उलझे अनगिनत लोगों को कथाकार बनाया। उन्होंने शब्दों और भावों के संकेतों से नव लेखकों को अपने अंदर छुपे हुए शब्दों को कहानी के विधान में पिरोना सिखाया। नव लेखकों को उत्साह देने में बाबा अणखी का कोई मुकाबला नहीं था। लुधियाना से बरनाला के रास्ते पर सफ़र करते हुए बाबा अणखी से हुई संक्षिप्त मुलाकातें यादों में तैरती रहीं। सड़क के दोनों ओर जहां तक नज़र जाती उनकी कथाओं और उपन्यासों के गांव नज़र आते।
पिछले साल, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की कांफ्रेंस में भाग लेने गया तो किसी अन्य विभाग के बुलावे पर था, लेकिन जो प्यार और सम्मान आधुनिक भारतीय भाषाओं के विभाग में पंजाबी विभाग के प्रमुख बाबा अणखी श्रवण पुत्र डॉ. करांतीपाल ने दिया और दिलवाया, उसे शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है। उसी वक्त डॉ. करांतीपाल ने कहा था, “कहानी पंजाब का 105वां अंक फरवरी 2025 में तुम रिलीज़ करने वाले हो।”
कहानी पंजाब, पंजाबी साहित्य की वह साहित्यिक पत्रिका है जिसे शुरू करने का सपना बाबा अणखी ने स्कूल में पढ़ते हुए देखा था।

यह सपना उन्होंने अपने लेखन के सफ़र की शुरूआत के पहले पायदान पर ही पूरा कर लिया। तब यह त्रैमासिक हुआ करता था। कहानी पंजाब विश्व भर के कथा साहित्य को पंजाबी साहित्य जगत से रूबरू हुआ करवाता। पाठकों और लेखकों को इस के हर नए अंक का इंतज़ार गर्मी में आम और सर्दी में गाजर के हलवे के इंतज़ार की तरह ही होता। बाबा अणखी के जाने के बाद डॉ. क्रांतिपाल ने इसे वार्षिक साहित्य एवं शोध पत्रिका के रूप में विकसित किया। आज यह यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमुख सहित्य शोध पत्रितकाओं में से एक है। हर साल आने वाले भारी-भरकम अंक में चार अंकों से ज़्यादा विश्व कथा साहित्य पंजाबी में अनूदित हो कर पढ़ने को मिलता है।
बाबा अखणी के देहावसान के बाद उनकी समृति में ‘राम स्वरूप अणखी यादगार सभा धौला’ नामक साहित्यिक सभा का गठन हुआ।
इस 14 फरवरी को सभा ने बाबा अणखी की 15वीं बरसी पर बहुत सुंदर कार्यक्रम आयोजित किया। धौला बरनाला शहर से सटा हुआ वह गांव है जहां पर बाबा अणखी का जन्म हुआ। सभा के अत्यंत सुव्यवस्थित प्रबंधन के सामने बड़े-बड़े संस्थाओं के आयोजन फीके नजर आए। सबसे बड़ी बात यह है कि यह कार्यक्रम 15 सालों से राम सरूप अणखी को प्रेम करने वाले अपनी जेब से कराते है। सभा के अध्यक्ष दीपअमन, महासचिव बेअंत बाजवा और संरक्षक गुरसेवक सिंह धौला समेत पूरी टीम का अद्वितीय प्रबंधन प्रशंसनीय है।
बाबा के लोकप्रिय और मेरे दिल के करीब, उपन्यास ‘कोठे खड़क सिंह’ की आदम कद कलाकृति, समारोह के प्रवेश द्वार पर आने वालों का स्वागत कर रही थी। यह कोठे खड़क सिंह की लोकप्रियता का ही परिणाम था कि हर कोई इस के साथ फोटो खिंचवाने के लिए उत्सुक था।
यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी कि मंच का संचालन सभा के अध्यक्ष या महासचिव ने नहीं बल्कि माननीय कथाकार भूपिंदर सिंह बेदी ने अपने दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में किया। पूरे कार्यक्रम के दौरान सभा के किसी भी अधिकारी ने इस में कोई दख़लअंदाजी नहीं की। बहुत जरूरी कोई सूचना होती तो बेअंत बाजवा एक छोटी सी पर्ची भेज देते। कार्यक्रम के अंत में गुरसेवक सिंह धौला को धन्यवाद करने के लिए केवल एक मिनट दिया गया और उन्होंने सचमुच एक मिनट में धन्यवाद कर के कार्यक्रम को शिखर पर पहुंचा दिया।
ना जाने यह मिसालें ख़ुद को बड़ी कहलाती साहित्यिक संस्थाओं के दंभी पददाधिकारियों के लिए कब यह सबक बन पाएंगी।
पूरे कार्यक्रम की जान बने रहे, भूपिंदर सिंह बेदी ने एक और सुंदर परंपरा से रूबरू कराया। अध्यक्षता मंडल में विद्वान आलोचक डॉ. सतनाम सिंह जस्सल, रूहदारी वाली पंजाबी गीतकारी के सुनहरे हस्ताक्षर मनप्रीत टिवाणा और मुझे मंच पर बुलाते हुए, बेदी ने कहा कि मैं तीन पीढ़ियों को मंच पर सुशोभित करने का सम्मान प्राप्त कर रहा हूँ। यह मेरे लिए किसी सरप्राइज से कम नहीं था क्योंकि इस की जानकारी मुझे पहले से नहीं थी। उनका मान रखते हुए, कुछ देर के लिए मैं बड़ों की संगत में मंच पर बैठ गया। लेकिन वहाँ बैठे हुए संकोच और लज्जा ने जकड़े रखा। फिर थोड़ी देर बाद, लघुशंका के बहाने, मैं दर्शकों में समा गया। इस सम्मान के लिए, मैं जितना भी धन्यवाद करना चाहूं, शब्दों में वह व्यक्त नहीं किया जा सकता।
समारोह के पहले पड़ाव में कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं से माहौल को काव्यमय बनाया।
अगले पड़ाव में कथाकार दर्शन जोगा, परमजीत मान, अनुवादक तिलक राज तिलक, डाक्टर सतनाम जस्सल समेत कई प्यारे सज्जनों ने बाबा अणखी से जुड़ी अपनी दिल को छू लेने वाली स्मृतियां बयान की। कहानीकार भोला सिंह संघेड़ा ने बताया कि कैसे अणखी साहब ने ख़ुद फोन करके उन्हें फिर से कहानियाँ लिखने के लिए प्रेरित किया। बाबा अणखी के स्वभाव, सृजन प्रक्रिया और नव लेखकों को स्थापित करने में निभाई भूमिका के बारे में कितनी ही नई बातें सुनने को मिलीं। इन बातों को सुनकर बाबा अखणी से मुझे मिले प्यार का अहसास और भी गहरा हो गया।
अपनी भावनाओं को साझा करते हुए मैंने बस इतना कहा कि पंजाबी साहित्य में बाबा अणखी के कोठे खड़क सिंह समेत पंजाबी साहित्य में कुछ विरले उपन्यास ही हैं जिन पर व्यावसायिक रूप से सफ़ल होने वाली बड़ी फिल्मों और वेब-सीरीज़ बनाई जा सकती हैं। पंजाबी कथाकारी में बहुत कम कथा साहित्य है जिन पर सफ़ल फ़िल्में बनाई जा सकती हैं।
दूसरी बात मैंने यह कही कि बाबा अणखी के करीबी रहे समकालीनों के पास जो बाबा से जुड़ी यादें हैं, उन्हें लिखने के साथ-साथ दस्तावेज़ी फ़िल्म के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए।
सिर्फ बाबा अणखी ही नहीं, बल्कि पिछली और नई पीढ़ी के अन्य साहित्यकार, जिन्हें पूरी तरह से भुला दिया गया है, उनके बारे में दस्तावेज़ी फ़िल्में बनाई जानी चाहिए। नई पीढ़ी को हमारे वरिष्ठ लेखकों की साहित्यिक विरासत से जोड़ने के लिए नई तकनीक और नए माध्यमों के जरिए पहल करना समय की मांग है।
समागम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भदौड़ के विधायक लाभ सिंह उगोके के सामने मैंने यह प्रस्ताव रखा कि भारतीय साहित्य अकादमी की तरह, भाषा विभाग, पंजाब भी पंजाबी लेखकों के जीवन पर दस्तावेज़ी फ़िल्मों के निर्माण के लिए एक विशेष फंड स्थापित करे और भाषा विभाग में फ़िल्म संकाय बनाकर इन फिल्मों के निर्माण, संरक्षण और उनकी स्क्रीनिंग का प्रबंध किया जाए। उन्होंने इस पर मुस्कुरा कर हामी भरी।
ख़ुशी की बात यह है कि सरदार लाभ सिंह उगोके के प्रयासों के चलते बाबा अणखी के गाँव के स्कूल का नाम बाबा राम स्वरूप अणखी के नाम पर रखा गया है।
क्षेत्र में बाबा अणखी के नाम पर 45 लाख रुपये की ग्रांट से लाइब्रेरी का निर्माण किया गया है, जिस का उद्धघाटन मार्च में होने वाला है। अगला प्रयास वह बाबा अणखी के नाम पर बरनाले में एक ऑडिटोरियम बनाने का कर रहे है, जिसका बजट लगभग करोड़ रुपये का है। हम दुआ करते हैं कि साहित्य और साहित्यकारों से प्रेम करने वाला हमारा यह युवा नेता अपने प्रयासों में सफ़ल हो।
कार्यक्रम के अगले चरण में सभी सम्मानित हस्तियों के साथ, कहानी पंजाब का 105वां अंक लोकार्पित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बाबा अणखी के बेटे डॉ. करांतीपाल ने संबोधन करते हुए बताया कि बाबा के पूरी तरह से जाने के बाद भी, बाबा की किताबों की रॉयल्टी के साथ बाबा द्वारा शुरू किया गया कहानी पंजाब लगातार 15 साल से चल रहा है और आगे भी निरंतर चलता रहेगा, जिसमें परिवार द्वारा अंशदान का योगदान दिया जाता है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कहानी पंजाब की वेबसाइट बना कर इसे विश्व स्तर के अंतरराष्ट्रीय मैगज़ीनों के बराबर पहुँचाया जाएगा, ताकि देश-विदेश में बसे बाबा अणखी से प्रेम करने वाले पंजाबी, प्यारे बाबा अणखी की विरासत से जुड़े रह सकें।
डॉ. करांतीपाल ने सभा की ओर से लगातार डेढ़ दशक से बाबा अणखी के समृति समारोह के माध्यम से बाबा की स्मृति को बनाए रखने के प्रयासों पर संतोष प्रकट किया।
पंजाबी साहित्य के मक्के, बरनाले की धरती को नमन करते हुए, मैं मोह, प्यार और सम्मान से ओत-प्रोत हूँ।
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