करीब 33 साल गुज़र जाने के बाद भी 1984 में हुए सिख कत्लेआम के लिए आज तक कोई इंसाफ़ नहीं मिल पाया है। इस दौरान चाहे केंद्र में कांग्रेस सरकार रही हो या ख़ुद का पंथ का पहरेदार कहने वाली शिरोमणि अकाली दल के समर्थन वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई हो,
सिख समुदाय को इंसाफ़ दिला पाने में आज तक कोई भी इच्छा शक्ति नहीं दिखा पाया है। अदालतों में तीन दशक से ज़्यादा केस चलने के बाद और अनेक कमिशनों की रिपोर्टों सौंपे जाने के बाद भी मामले जहां के तहां अटके हुए हैं। दिल्ली और पंजाब के साथ-साथ देश में जब भी चुनाव हों इन मामलों पर राजनीति तो की जाती है, लेकिन अमली रूप में इंसाफ दिलाने के लिए कुछ नहीं किया जाता, बस कुछ मुआवज़ा देकर सहानुभूति बटोर ली जाती है।
ऐसे में कत्लेआम के बहाने होती राजनीति में ऐसे बयान दागे जाते हैं जो पीड़ितों के सीने फिर से छलनी कर देते हैं। लेकिन पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी का एक ऐसा बयान है, जिसे सिख समुदाय कभी भूल नहीं पाया।
31 अक्तूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब दिल्ली में कत्लेआम शुरू हो गया और सिख समुदाय के घरों और धार्मिक स्थलों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया। बाद में राजीव गांधी ने ऐसा बयान दिया जो मरहम लगाने की बजाए ज़ख़्मों को और भी गहरा कर गया। वह ऐसा कत्लेआम था जिसमें देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह के काफ़िले से लेकर तत्तकालीन आरबीआई के गर्वनर (बाद में प्रधानमंत्री बने) डॉ. मनमोहन सिंह के घर तक को निशाना बनाया गया। राजीव गांधी ने कहा, ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।’ राजीव गांधी के बयान वाला यह वीडियो एक बार फिर से चर्चा में आ गया है और इन दिनों पंजाब में विभिन्न वट्सऐप ग्रुपों में घुम रहा है।-
यह वीडियो पिछले साल चौरासी कत्लेआम के कई मामलों में वकील एवं आम आदमी पार्टी के पंजाब के मुल्लांपर दाखा से सांसद हरविंदर सिंह फूल्का ने दिल्ली में जारी किया था। उक्त शीर्षक के साथ फूलका एक किताब भी लिख चुके हैं। फूल्का का कहना था कि राजीव गांधी ने इस बयान ज़रिए 1984 के कत्लेआम को जायज़ ठहराया था। इस वीडियो पर दूरदर्शन आर्काईव का लोगो नज़र आ रहा है। ज़ोरदार टाइम्ज़ इस वीडियो की सत्यता की दावा नहीं कर सकता।
अगर देश की प्रधानमंत्री के कत्ल को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता और उनके कातिलों को फांसी की सज़ा दी जा सकती है तो हज़ारों लोगों के कत्लेआम को कैसे जायज़ ठहराया जा सकता है, यह सवाल इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगा। क्या कभी इसका उत्तर मिलेगा? क्या कभी पीड़ितों को न्याय मिलेगा?
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