-दीप जगदीप सिंह-
कभी बिहार तो यूपी तो कभी पंजाब…
सियासत से लेकर बाज़ार सब मिल कर प्रस्थितियों को भुना लेना चाहते हैं। पंजाब गर्त में जा रहा है। भ्रूण हत्या के मामले में लिंग अनुपात में सबसे निचले पायदान पर… यानि लड़कियों का भवष्यि खतरे में है। हर रोज़ दो से तीन किसान खुदकुशी कर रहे हैं, यानि उनका भविष्य भी अंधकारमय है। व्यपारी, दुकानदार से लेकर मज़दूर सब बेहाल हैं। कहीं काम धंधा नहीं है, रोज़गार नहीं है। पंजाब का युवा तंग आकर विदेश के जहाज़ में बैठने के लिए आतुर है। जिसके पास पैसा या ज़मीन है वह कुछ ना कुछ जुगाड़ लगा कर उड़ रहा है। जिसके पास कोई जुगाड़ नहीं है वह ‘चिट्टा’ (हीरोईन) पीकर यहीं उड़ने की फीलिंग ले रहा है।
अगले साल पंजाब में चुनाव आने वाले हैं, अकाली दल भाजपा की हालत पतली है, गांव-गांव में ‘आप’ का डंका बज रहा है, हर किसी को लग रहा है आप सफैद और हरी के बाद पंजाब में किसी ‘नए रंग की क्रांति’ ला देगी।
मुंबई की एक नारी हैं, जिन्होंने सास-बहु की हाई-फाई ‘जंग’ दिखा कर सालों अपनी जेब भरी और भारतीय नारी को बौद्धिक कंगाल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह बाज़ार को ख़ूब समझती हैं। नाम तो उनका एकता है लेकिन ‘परिवारों’ में ‘फूट डालने’ की मास्टर है वो। अनुराग कश्यप क्राईम फिल्में बनाने के मास्टर हैं। अच्छे फिल्मकार हैं… लेकिन लगता है कि एकता के चक्कर में आकर बाज़ार-बाज़ार खेलने के मूड में आ गए हैं।
सियासतदानों की तरह फिल्मी बाज़ार भी पंजाब की भयावह हालत को कैश कर लेना चाहता है। वो जानता है कि राजनैतिक उठापटक के दौर में पंजाब का युवा दर्शक ‘बोलने की आज़ादी की हुंकार’ में अपनी आवाज़ मिला देगा। वैसे भी जून का महीना पंजाब के ऐतिहासक महत्व के हिसाब से काफी गर्म होता है। इसमें शक नहीं कि पहलाज निहलानी इन दिनों खूब राष्ट्रभक्ति चमका रहे हैं और फिल्म पर कैंची चलाने के पीछे भाजपा का अकाली दल के ज़रिए कुर्सी प्रेम भी लाज़मी तौर पर होगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि फिल्म के सैंसर को लेकर इतना बड़ा हो हल्ला और मीडिया माईलेज की आवश्यकता है। अनुराग ने टविटर पर कह भी दिया हैं कांग्रेस, आप और अन्य दल दूर ही रहें, वह अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं। तो आम जनता को भी थोड़ा आराम करना चाहिए। अनुराग को अपनी लड़ाई लड़ने देनी चाहिए, अगर उनके तर्क में दम होगा तो वह सिनेमा के मैदान में उतर जाएंगे, नहीं तो अगली फिल्म आ जाएगी। बॉम्बे वैलवेट के बाद से वह कह भी रहे हैं कि एक फिल्म गुज़र जाने के बाद वह तुरंत दूसरी पर ध्यान लगा देते हैं। अनुराग कश्यप और एकता कपूर के पास ऐसी कौन सी संजीवनी है कि वह पंजाब की नशे की समस्या रातों-रात हल कर देंगे या यूं कह दें कि वह रास्ता बता देंगे या क्या उनकी फिल्म कुछ ऐसे सच उजागर कर देने वाली है जिसे अब तक कोई नहीं जानता, तो क्या यह फिल्म अदालत में सुबूत के तौर पर पेश की जा सकेगी। उसके तो शुरू में डिस्कलेमर आएगा ना कि ‘सभी पात्र और घटनाएं काल्पिनक’ हैं। तो इतना हो हल्ला क्यूं मेरे भाई, ऐसी कई फिल्में आई और गई…
अगर फिल्मकारों को कमाई से ज़्यादा सचमुच पंजाब का दर्द सता रहा है तो मेरी उनसे विनती है कि जल्द से जल्द उसे यूटयूब पर रिलीज़ कर दें, ताकि समय रहते पंजाब के जनता को जागरूक किया जा सके। तो प्यारी जनता ज़रा बिल्ली को थैले से बाहर आने दीजिए, फिर तेल देखिए तेल की धार देखिए, बिना देखे फिल्म का मुफ्त में प्रचार मत करिए, आखिर एक फिल्म ही तो है।
पहलाज, मोदी और बादल भी कई आए और गए, आते-जाते रहेंगे, जनता जर्नादन ने आज तक बख्शा है किसी को…
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